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समयसार - कलश
[ मन्दाक्रान्ता ]
रागादीनां झगिति विगमात्सर्वतोऽप्यास्रवाणां नित्योद्योतं किमपि परमं वस्तु सम्पश्यतोऽन्तः। स्फारस्फारैः स्वरसविसरै: प्लावयत्सर्वभावानालोकान्तादचलमतुलं ज्ञानमुन्मग्नमेतत् ।। १२-१२४।।
[ हरिगीत ]
निज आतमा जो परमवस्तु उसे जो पहिचानते । अर उसी में जो नित रमें अर उसे ही जो जानते ।। वे आस्रवों का नाशकर नित रहें आतम ध्यान में ।
वे रहें निज में किन्तु लोकालोक उनके ज्ञान में ।।१२४।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- 'एतत् ज्ञानम् उन्मग्नम् ' [ एतत् ] जैसा कहा है वैसा शुद्ध [ज्ञानम्] शुद्ध चैतन्यप्रकाश [ उन्मग्नम् ] प्रगट हुआ। जिसको ज्ञान प्रगट हुआ वह जीव कैसा है ? ' किमपि वस्तु अन्तः सम्पश्यतः ' [ किम् अपि वस्तु ] निर्विकल्पसत्तामात्र कुछ वस्तु, उसको [अन्तः सम्पश्यतः] भावश्रुतज्ञानके द्वारा प्रत्यक्षपने अवलंबता है। भावार्थ इस प्रकार है शुद्धस्वरूपके अनुभवके काल जीव काष्ठके समान जड़ है ऐसा भी नहीं है, सामान्यतया सविकल्पी जीवके समान विकल्पी भी नहीं है, भावश्रुतज्ञानके द्वारा कुछ निर्विकल्पवस्तुमात्रको अवलंबता है। अवश्य अवलंबता है। "परमं ऐसे अवलंबनको वचनद्वारसे कहनेको समर्थपना नहीं है, इसलिए कहना शक्य नहीं। कैसा है शुद्ध ज्ञानप्रकाश ? ' नित्योद्योतं " अविनाशी है प्रकाश जिसका । किस कारणसे? ‘— रागादीनां झगिति विगमात् ' [ रागादीनां ] राग, द्वेष, मोहकी जातिके हैं जितने असंख्यात लोकमात्र अशुद्धपरिणाम उनका [ झगिति विगमात् ] तत्काल विनाश होनेसे। कैसे हैं अशुद्धपरिणाम ? ‘“ सर्वतः अपि आस्रवाणां ' ' [ सर्वतः अपि ] सर्वथा प्रकार [ आस्रवाणां ] आस्रव ऐसा नाम-संज्ञा है जिनकी, ऐसे हैं । भावार्थ इस प्रकार है - जीवके अशुद्ध रागादि परिणामको सच्चा आस्रवपना घटता है, उनका निमित्त पाकर कर्मरूप आस्रवती हैं जो पुद्गलकी वर्गणा वे तो अशुद्ध परिणामके सहारेकी है, इसलिए उनकी कौन बात, परिणामोंके शुद्ध होनेपर सहज ही मिटती है। और कैसा है शुद्धज्ञान ? '' सर्वभावान् प्लावयन् '' [ सर्वभावान् ] जितने ज्ञेय वस्तु अतीत, अनागत, वर्तमान पर्यायसे सहित हैं उनको [ प्लावयन् ] अपनेमें प्रतिबिंबित करता हुआ । किसके द्वारा ? 'स्वरसविसरै: ' ' [ स्वरस ] चिद्रूप गुण, उसकी [ विसरै: ] अनंत शक्ति, उसके द्वारा । कैसी है वे ? 'स्फारस्कारै:' ' [ स्फार ] अनंत शक्ति, उससे भी [ स्फारै: ] अनंतानंतगुणी है । भावार्थ इस प्रकार है द्रव्य अनंत हैं, उनसे पर्यायभेद अनंतगुणे हैं। उन समस्त ज्ञेयों से ज्ञानकी अनंतगुणी शक्ति है। ऐसा द्रव्यका स्वभाव है । और कैसा है शुद्ध ज्ञान ? " आलोकान्तात् अचलम्'' सकल कर्मोंका क्षय होनेपर जैसा उत्पन्न हुआ वैसा ही अनंत काल पर्यंत रहेगा, कभी और-सा नहीं होगा। और कैसा है शुद्ध ज्ञान ? " अतुलं " तीन लोकमें जिसका सुखरूप परिणमनका दृष्टांत नहीं है । ऐसा शुद्ध ज्ञानप्रकाश प्रगट हुआ ।। १२-१२४ ।।
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[ भगवान् श्री कुन्दकुन्द -
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