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[ भगवान् श्री कुन्द - कुन्द
उसके प्रति उत्तर ऐसा जो 'कर्मभेद: न हि " कोई कर्म शुभरूप, कोई कर्म अशुभरूप - ऐसा भेद तो नहीं है। किस कारणसे ? '' हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां सदा अपि अभेदात् '' [ हेतु ] कर्मबंधके कारण विशुद्ध परिणाम संक्लेश परिणाम ऐसे दोनों परिणाम अशुद्धरूप हैं, अज्ञानरूप हैं। इससे कारणभेद भी नही है, कारण एक ही है। [ स्वभाव] शुभकर्म अशुभकर्म ऐसे दोनों कर्म पुद्गलपिण्डरूप हैं। इस कारण एक ही स्वभाव है, स्वभाव भेद तो नहीं । [ अनुभव ] रस भी तो एक ही है, रसभेद तो नहीं। विवरण- शुभकर्मके उदयसे जीव बँधा है, सुखी है। अशुभकर्मके उदयसे जीव बँधा है, दुःखी है। विशेष तो कुछ नहीं । [ आश्रय ] फलकी निष्पत्ति, वह भी एक ही है, विशेष तो कुछ नहीं । विवरण - शुभकर्मके उदय संसार, त्यों ही अशुभ कर्मके उदय विशेष तो कुछ नहीं। इससे ऐसा अर्थ निश्चित हुआ कि कोई कर्म भला, कोई कर्म बुरा ऐसा तो नहीं, सबही कर्म दुःखरूप हैं। " तत् एकम् बन्धमार्गाश्रितम् इष्टं '' [ तत् ] कर्म [ एकम् ] निःसंदेह [बन्धमार्गाश्रितम्] बन्धको करता है, [ इष्टं] गणधरदेवने ऐसा माना है । किस कारणसे ? जिस कारण " खलु समस्तं स्वयं बन्धहेतुः '' [ खलु ] निश्चयसे [ समस्तं ] सर्व कर्मजाति [ स्वयं बन्धहेतुः ] आप भी बंधरूप है। भावार्थ इस प्रकार है आप मुक्तस्वरूप होवे तो कदाचित् मुक्तिको करे । कर्मजाति आप स्वयं बंध पर्यायरूप पुद्गलपिण्ड बँधी है सो मुक्ति कैसे करेगी। इससे कर्म सर्वथा बंधमार्ग है । । ३ - १०२ ।।
संसार ।
समयसार - कलश
[ स्वागता ]
कर्म सर्वमपि सर्वविदो यद् बन्धसाधनमुशन्त्यविशेषात्।
तेन सर्वमपि तत्प्रतिषिद्धं ज्ञानमेव विहितं शिवहेतुः ।। ४-१०३ ॥
[ दोहा ]
जिन वाणी का मर्म यह बंध करे सब कर्म ।
मुक्ति हेतु सब एक ही आत्म ज्ञानमय धर्म । । १०३ ।।
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खंडान्वय सहित अर्थ:- ‘यत् सर्वविदः सर्वम् अपि कर्म अविशेषात् बन्धसाधनम् उशन्ति '' [ यत् ] जिस कारण [ सर्वविदः ] सर्वज्ञ वीतराग, [ सर्वम् अपि कर्म ] जितनी शुभरूप व्रत संयम तप शील उपवास इत्यादि क्रिया अथवा विषय - कषाय असंयम इत्यादि क्रिया उसको [ अविशेषात् ] एकसी दृष्टिकर [बन्धसाधनम् उशन्ति ] बन्धका कारण कहते हैं । भावार्थ इस प्रकार है - जैसे जीवको अशुभ क्रिया करते हुए बन्ध होता है वैसे ही शुभ क्रिया करते हुए जीवको बन्ध होता है, बंधनमें तो विशेष कुछ नहीं। '' तेन तत् सर्वम् अपि प्रतिषिद्धं '' [ तेन ] इस कारणसे [ तत् ] कर्म [ सर्वम् अपि ] शुभरूप अथवा अशुभरूप [ प्रतिषिद्धं ] कोई मिथ्यादृष्टि जीव शुभ क्रियाको मोक्षमार्ग जानकर पक्ष करता है सो निषेध किया, ऐसा भाव स्थापित किया कि मोक्षमार्ग कोई कर्म नहीं ।
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'एव ज्ञानम् शिवहेतुः विहितं" [ एव] निश्चयसे [ज्ञानम् ] शुद्धस्वरूप – अनुभव [ शिवहेतुः ] मोक्षमार्ग है, [विहितं ] अनादि परम्परा ऐसा उपदेश है । । ४ - १०३ ।।
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