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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला ] कर्ता-कर्म-अधिकार "" GG "" .. [अविकल्पभावम् ] निर्विकल्प शुद्ध चैतन्यवस्तु, उस रूप [आक्रामन् ] जिस प्रकार शुद्धस्वरूप है उस प्रकार परिणमता हुआ । भावार्थ इस प्रकार है जितना नय है उतना श्रुतज्ञानरूप है, श्रुतज्ञान परोक्ष है, अनुभव प्रत्यक्ष है, इसलिए श्रुतज्ञान बिना जो ज्ञान है वह प्रत्यक्ष अनुभवता है। इस कारण प्रत्यक्षपरूपसे अनुभवता हुआ जो कोई शुद्धस्वरूप आत्मा' स: विज्ञानैकरस: '' वही ज्ञानपुज्ज वस्तु है ऐसा कहा जाता है। 'स: भगवान्'' वही परब्रह्म परमेश्वर ऐसा कहा जाता है। एषः पुण्यः वही पवित्र पदार्थ ऐसा भी कहा जाता है । 'एषः पुराणः '' वही अनादिनिधन वस्तु ऐसा भी कहा जाता है। 'एषः पुमान्'' वही अनंत गुण बिराजमान पुरूष ऐसा भी कहा जाता है। 'अयं ज्ञानं दर्शनम् अपि '' वही सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान ऐसा भी कहा जाता है।'' अथवा किम् '' बहुत क्या कहें ? 'अयम् एकः यत् किञ्चन अपि [ अयम् एकः ] यह जो है शुद्धचैतन्यवस्तुकी प्राप्ति[ यत् किञ्चन अपि ] उसे जो कुछ कहा जाय वही है, जैसी भी कही जाय वैसी ही है। भावार्थ इस प्रकार है शुद्धचैतन्यमात्र वस्तुप्रकाश निर्विकल्प एकरूप है, उसके नामकी महिमा की 66 " । "" "" जाय सो अनन्त नाम कहे जायँ उतने ही घटित हो जायँ, वस्तु तो एकरूप है। कैसा है वह शुद्धस्वरूप आत्मा ? 'निभृतैः स्वयं आस्वाद्यमान: '' निश्चल ज्ञानी पुरूषोंके द्वारा आप स्वयं अनुभवशील है।। ४८- ९३ ।। 66 - [ शार्दूलविक्रीडित] दूरं भूरिविकल्पजालगहने भ्राम्यन्निजौघाच्च्युतौ दूरादेव विवेकनिम्नगमनान्नीतो निजौघं बलात्। विज्ञानैकरसस्तदेकरसिनामात्मानमात्मा हरन् आत्मान्येव सदा गतानुगततामायात्ययं तोयवत्।। ४९-९४।। [ हरिगीत ] निज औघ से च्युत जिस तरह जल ढाल वाले मार्गसे। बलपूर्वक यदि मोड़ दें तो आमिले निज औघ से ।। उस ही तरह यदि मोड़ दें बलपूर्वक निज भावको । निजभाव से च्युत आत्मा निजभाव में ही आमिले ।। ९४ ।। ७७ खंडान्वय सहित अर्थ:- ‘— अयं आत्मा गतानुगततां आयाति तोयवत्'' [अयं ] द्रव्यरूप विद्यमान है ऐसा [आत्मा ] आत्मा अर्थात् चेतनपदार्थ [ गतानुगतताम् ] स्वरूपसे नष्ट हुआ था सो फिर उस स्वरूपको प्राप्त हुआ, ऐसे भावको [ आयाति ] प्राप्त होता है । दृष्टांत - [ तोयवत् ] पानीके समान। क्या करता हुआ ? '' आत्मानम् आत्मनि सदा आहरन् '' आपको आपमें निरन्तर अनुभवता हुआ। कैसा है आत्मा ? ' तदेकरसिनाम् विज्ञानैकरस: [तदेकरसिनाम्] अनुभवरसिक हैं जो पुरुष उनको [विज्ञानैकरसः ] ज्ञानगुण आस्वादरूप है। कैसा हुआ है ? '' निजौघात् च्युतः ' [निजौघात् ] जिस प्रकार पानीका शीत, स्वच्छ, द्रवत्व स्वभाव है, उस स्वभावसे कभी च्युत होता है, अपने स्वभावको छोड़ता है, उसी प्रकार जीवद्रव्यका स्वभाव केवलज्ञान, केवलदर्शन, अतीन्द्रिय सुख इत्यादि अनंत गुणस्वरूप है, उससे [ च्युतः ] अनादि कालसे भ्रष्ट हुआ है, विभावरूप परिणमा है । भ्रष्टपना जिस प्रकार है उस प्रकार कहते हैं। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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