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समयसार-कलश
[भगवान् श्री कुन्द-कुन्द
[उपजाति] एकस्य चेत्यो न तथा परस्य चिति द्वयोर्धाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ४१-८६ ।।
[रोला] एक कहे ना चेत्य दूसरा कहे चेत्य है, किन्तु यह तो उभय नयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्व वेदी जो जन हैं , उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८६ ।।
अर्थ:- जीव चेत्य [ जानने योग्य ] है ऐसा एक नयका पक्ष है और जीव चेत्य नहीं है ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; इस प्रकार चित्स्वरूप जीव के सम्बन्धमें दो नयोंके दो पक्षपात है। जो तत्त्ववेत्ता पक्षपात रहित है उसे निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।। ४१-८६।।
[उपजाति] एकस्य दृश्यो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ४२-८७।।
[रोला] एक कहे ना दृश्य दूसरा कहे दृश्य है, किन्तु यह तो उभय नयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्व वेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८७।।
अर्थ:- जीव दृश्य [ देखने योग्य ] है ऐसा एक नयका पक्ष है और जीव दृश्य नहीं है ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; इस प्रकार चित्स्वरूप जीव के सम्बन्धमें दो नयोंके दो पक्षपात है। जो तत्त्ववेत्ता पक्षपात रहित है उसे निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।। ४२-८७।।
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