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कहान जैन शास्त्रमाला]
कर्ता-कर्म-अधिकार
[उपजाति] एकस्य वाच्यो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ३९-८४।।
[रोला] एक कहे ना वाच्य दूसरा कहे वाच्य है, किन्तु यह तो उभय नयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्व वेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८४।।
अर्थ:- जीव वाच्य [अर्थात वचनसे कहा जा सके ऐसा है ऐसा एक नयका पक्ष है और जीव वाच्य [ वचनगोचर] नहीं है ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; इस प्रकार चित्स्वरूप जीव के सम्बन्धमें दो नयोंके दो पक्षपात है। जो तत्त्ववेत्ता पक्षपात रहित है उसे निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।। ३९-८४ ।।
[उपजाति] एकस्य नाना न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ४०-८५।।
[रोला] नाना कहता एक दूसरा कहे अनाना, किन्तु यह तो उभय नयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्व वेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८५।।
अर्थ:- जीव नानारूप है ऐसा एक नयका पक्ष है और जीव नानारूप नहीं है ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; इस प्रकार चित्स्वरूप जीव के सम्बन्धमें दो नयोंके दो पक्षपात है। जो तत्त्ववेत्ता पक्षपात रहित है उसे निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।।४०-८५।।
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