________________
80
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पंचास्तिकायसंग्रह
अत्र सदसतोरविनाशानुत्पादौ स्थितिपक्षत्वेनोपन्यस्तौ।
यदि हि जीवो य एव म्रियते स एव जायते, य एव जायते स एव म्रियते, तदैवं सतो विनाशोऽसत् उत्पादश्च नास्तीति व्यवतिष्ठते । यत्तु देवो जायते मनुष्यो म्रियते इति व्यपदिश्यते तदवधृतकालदेवमनुष्यत्वपर्यायनिर्वर्तकस्य देवमनुष्यगतिनाम्नस्तन्मात्रत्वादविरुद्धम् । यथा हि महतो वेणुदण्डस्यैकस्य क्रमवृत्तीन्यने कानि पर्वाण्यात्मीयात्मीयप्रमाणावच्छिन्नत्वात् पर्वान्तरमगच्छन्ति स्वस्थानेषु भावभाज्जि परस्थानेष्वभावभाजि भवन्ति, वेणुदण्डस्तु सर्वेष्वपि पर्वस्थानेषु भावभागपि पर्वान्तरसंबन्धेन पर्वान्तरसंबन्धाभावादभावभाग्भवति; तथा निरवधित्रि-कालावस्थायिनो जीवद्रव्यस्यैकस्य क्रमवृत्तयोऽनेके: मनुष्यत्वादिपर्याया आत्मीयात्मीयप्रमाणा-वच्छिन्नत्वात् पर्यायान्तरमगच्छन्तः स्वस्थानेषु भावभाजः परस्थानेष्वभावभाजो भवन्ति, जीवद्रव्यं तु सर्वपर्यायस्थानेषु भावभागपि पर्यायान्तरसंबन्धेन पर्यायान्तरसंबन्धाभावादभावभाग्भवति।।१९।।
[ भगवान श्री कुन्दकुन्द
टीका:- यहाँ सत्का अविनाश और असत्का अनुत्पाद ध्रुवताके पक्षसे कहा है [ अर्थात् ध्रुवताकी अपेक्षासे सत्का विनाश या असत्का उत्पाद नहीं होता-- ऐसा इस गाथामें कहा है ]।
यदि वास्तवमें जो जीव मरता है वही जन्मता है, जो जीव जन्मता वही मरता है, तो इसप्रकार सत्का विनाश और असत्का उत्पाद नहीं है ऐसा निश्चित होता है । और ‘देव जन्मता है और मनुष्य मरता है' ऐसा जो कहा जाता है वह [भी] अविरुद्ध है क्योंकि मर्यादित कालकी देवत्वपर्याय और मनुष्यत्वपर्यायको रचने वाले देवगतिनामकर्म और मनुष्यगतिनामकर्म मात्र उतने काल जितने ही होते हैं। जिसप्रकार एक बड़े बाँसके क्रमवर्ती अनेक 'पर्व अपने-अपने मापमें मर्यादित होनेसे अन्य पर्वमें न जाते हुए अपने-अपने स्थानोंमें भाववाले [ - विद्यमान ] हैं और पर स्थानोंमें अभाववाले [ - अविद्यमान ] तथा बाँस तो समस्त पर्वस्थानोंमें भाववाला होनेपर भी अन्य पर्वके सम्बन्ध द्वारा अन्य पर्वके सम्बन्धका अभाव होनेसे अभाववाला [भी] है; उसीप्रकार निरवधि त्रिकाल स्थित रहनेवाले एक जीवद्रव्यकी क्रमवर्ती अनेक मनुष्यत्वादिपर्याय अपने-अपने मापमें मर्यादित होनेसे अन्य पर्यायमें न जाती हुई अपने-अपने स्थानोंमें भाववाली हैं और पर स्थानों में अभाववाली हैं तथा जीवद्रव्य तो सर्वपर्यायस्थानोमें भाववाला होने पर भी अन्य पर्यायके सम्बन्ध द्वारा अन्य पर्यायके सम्बन्धका अभाव होनेसे अभाववाला [भी] है ।
१। पर्व = एक गांठसे दूसरी गांठ तकका भाग; पोर ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com