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कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन दुग्धदधिनवनीतधृतादिवियुतगोरसवत्पर्यायवियुतं द्रव्यं नास्ति। गोरसवियुक्तदुग्धदधिनवनीतधृतादिवट्रव्यवियुक्ताः पर्याया न सन्ति। ततो द्रव्यस्य पर्यायाणाञ्चादेशवशात्कथंचिनेदेऽप्पेकास्तित्वनियतत्वादन्योन्याजहद्वृत्तीनां वस्तुत्वेनाभेद इति।।१२।।
देव्वेण विणा ण गुणा गुणहिं दव्वं विणा ण संभवदि। अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाणं हवदि तम्हा।।१३।।
द्रव्येण विना न गुणा गुणैर्द्रव्यं विना न सम्भवति। अव्यतिरिक्तो भावो द्रव्यगुणानां भवति तस्मात्।।१३।।
अत्रद्रव्यगुणानामभेदो निर्दष्टः। पुद्गलपृथग्भूतस्पर्शरसगन्धवर्णवद्र्व्येण विना न गुणाः संभवन्ति स्पर्शरस
जिसप्रकार दूध, दही, मक्खण, घी इत्यादिसे रहित गोरस नहीं होता उसीप्रकार पर्यायोंसे रहित द्रव्य नहीं होता; जिसप्रकार गोरससे रहित दूध, दही, मक्खण, घी इत्यादि नहीं होते उसीप्रकार द्रव्यसे रहित पर्यायें नहीं होती। इसलिये यद्यपि द्रव्य और पर्यायोंका आदेशवशात् [कथनके वश ] कथंचित भेद है तथापि, वे एक अस्तित्वमें नियत [ –दृढ़रूपसे स्थित ] होनेके कारण *अन्योन्यवृत्ति नहीं छोड़ते इसलिए वस्तुरूपसे उनका अभेद है।। १२ ।।
गाथा १३
अन्वयार्थ:- [ द्रव्येण विना] द्रव्य बिना [ गुणः न ] गुण नहीं होते, [ गुणैः विना] गुणों बिना [ द्रव्यं न सम्भवति] द्रव्य नहीं होता; [ तस्मात् ] इसलिये [ द्रव्यगुणानाम् ] द्रव्य और गुणोंका [अव्यतिरिक्तः भावः ] अव्यतिरिक्तभाव [ –अभिन्नपणुं] [ भवति ] है।
टीकाः- यहाँ द्रव्य और गुणोंका अभेद दर्शाया है ।
जिसप्रकार पुद्गलसे पृथक् स्पर्श-रस-गंध-वर्ण नहीं होते उसीप्रकार द्रव्यके बिना गुण नहीं होते; जिसप्रकार स्पर्श-रस-गंध-वर्णसे पृथक् पुद्गल नहीं होता उसीप्रकार गुणोंके बिना द्रव्य
* अन्योन्यवृत्ति-एक-दूसरेके आश्रयसे निर्वाह करना; एक-दूसरेके आधारसे स्थित रहना; एक-दूसरेके बना
रहना।
नहि द्रव्य विण गुण होय, गुण विण द्रव्य पण नहि होय छे; तेथी गुणो ने द्रव्य केरी अभिन्नता निर्दिष्ट छ। १३ ।
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