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कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
[ २५
अत्र सत्ताद्रव्ययोरर्थान्तरत्वं प्रत्याख्यातम्।
द्रवति गच्छति सामान्यरूपेण स्वरूपेण व्याप्नोति तांस्तान् क्रमभुवः सहभुवश्वसद्भावपर्यायान् स्वभावविशेषानित्यनुगतार्थया निरुक्त्या द्रव्यं व्याख्यातम्। द्रव्यं च लक्ष्य-लक्षणभावादिभ्यः कथञ्चिद्भेदेऽपि वस्तुतः सत्ताया अपृथग्भूतमेवेति मन्तव्यम्। ततो यत्पूर्वं सत्त्वमसत्त्वं त्रिलक्षणत्वमविलक्षणत्वमेकत्वमनेकत्वं सर्वपदार्थस्थितत्वमेकपदार्थस्थितत्वं विश्व
गाथा ९
अन्वयार्थ:- [ तान् तान् सद्भावपर्यायान् ] उन-उन सद्भावपर्यायोको [ यत् ] जो [ द्रवति] द्रवित होता है - [ गच्छति ] प्राप्त होता है, [ तत् ] उसे [द्रव्यं भणन्ति ] [ सर्वज्ञ ] द्रव्य कहते हैं - [ सत्तातः अनन्यभूतं तु] जो कि सत्तासे अनन्यभूत है।
___टीकाः- यहाँ सत्ताने और द्रव्यको अर्थान्तरपना [ भिन्नपदार्थपना, अन्यपदार्थपना] होनेका खण्डन किया है।
___' उन-उन क्रमभावी और सहभावी सद्भावपर्यायोंको अर्थात स्वभावविशेषोंको जो 'द्रवित होता है - प्राप्त होता है - सामान्यरूप स्वरूपसे व्याप्त होता है वह द्रव्य है' - इस प्रकार अनुगत अर्थवाली निरुक्तिसे द्रव्यकी व्याख्या की गई। और यद्यपि 'लक्ष्यलक्षणभावादिक द्वारा द्रव्यको सत्तासे कथंचित् भेद है तथापि वस्तुतः [ परमार्थेतः ] द्रव्य सत्तासे अपृथक् ही है ऐसा मानना। इसलिये पहले [८वीं गाथामें ] सत्ताको जो सत्पना, असत्पना, त्रिलक्षणपना, अत्रिलक्षणपना, एकपना,
१। श्री जयसेनाचार्यदेवकी टीकामें भी यहाँकी भाँति ही 'द्रवति गच्छति' का एक अर्थ तो 'द्रवित होता है अर्थात्
प्राप्त होता है ' ऐसा किया गया है; तदुपरान्त 'द्रवति' अर्थात स्वभावपर्यायोंको द्रवित होता है और गच्छति अर्थात विभावपर्यायोंको प्राप्त होता है ' ऐसा दूसरा अर्थ भी यहाँ किया गया है। २। यहाँ द्रव्यकी जो निरुक्ति की गई है वह 'द्रु' धातुका अनुसरण करते हुए [-मिलते हुए] अर्थवाली हैं। ३। सत्ता लक्षण है और द्रव्य लक्ष्य है।
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