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कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
[ २३ भवतीत्येकपदार्थस्थितत्वं सर्वपदार्थ स्थितायाः। प्रतिनियतैकरूपाभिरेव सत्ताभिः प्रतिनियतैकरूपत्वं वस्तूनां भवतीत्येकरूपत्वं सविश्वरूपायाः प्रतिपर्यायनियताभिरेव सत्ताभिः प्रतिनियतैकपर्यायाणामानन्त्यं भवतीत्येकपर्याय-त्वमनन्तपर्यायायाः। इति सर्वमनवयं सामान्यविशेषप्ररूपणप्रवणनयद्वयायत्तत्वात्तद्देशनायाः।।८।।
'सर्वपदार्थस्थित' है वही यहाँ कही हुई अवान्तरसत्तारूप भी होनेसे 'एकपदार्थस्थित' भी है।] [५] प्रतिनिश्चित एक-एक रूपवाली सत्ताओं द्वारा ही वस्तुओंका प्रतिनिश्चित एक एकरूप होता है इसलिये सविश्वरूप [ सत्ता] को एकरूपपना है [ अर्थात् जो सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होनेसे 'सविश्वरूप' है वही यहाँ कही हुई अवान्तरसत्तारूप भी होनेसे ‘एकरूप' भी है]। [६] प्रत्येक पर्यायमें स्थित [ व्यक्तिगत भिन्न-भिन्न ] सत्ताओं द्वारा ही प्रतिनिश्चित एक-एक पर्यायोंका अनन्तपना होता है इसलिये अनंतपर्यायमय [ सत्ता] को एकपर्यायमयपना है [अर्थात् जो सामान्यविशेषात्मक सत्ता महासत्तारूप होनेसे 'अनंतपर्यायमय' है वही यहाँ कही हुई अवान्तरसत्तारूप भी होनेसे 'एकपर्यायमय' भी है।
इसप्रकार सब निरवद्य है [ अर्थात् ऊपर कहा हुआ सर्व स्वरूप निर्दोष है, निर्बाध है, किंचित विरोधवाला नहीं है ] क्योंकि उसका [-सत्ताके स्वरूपका ] कथन सामान्य और विशेषके प्ररूपण की ओर ढलते हुए दो नयोंके आधीन है।
भावार्थ:- सामान्यविशेषात्मक सत्ताके दो पक्ष हैं:-- एक पक्ष वह महासत्ता और दूसरा पक्ष वह अवान्तरसत्ता। [१] महासत्ता अवान्तरसत्तारूपसे असत्ता है और अवान्तरसत्ता महासत्तारूपसे असत्ता है; इसलिये यदि महासत्ताको ‘सत्ता' कहे तो अवान्तरसत्ताको 'असत्ता' कहा जायगा। [२] महासत्ता उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ऐसे तीन लक्षणवाली है इसलिये वह 'त्रिलक्षणा' है। वस्तुके उत्पन्न होनेवाले स्वरूपका उत्पाद ही एक लक्षण है, नष्ट होनेवाले स्वरूपका व्यय ही एक लक्षण है और ध्रुव रहनेवाले स्वरूपका ध्रौव्य ही एक लक्षण है इसलिये उन तीन स्वरूपोंमेंसे प्रत्येककी अवान्तरसत्ता एक ही लक्षणवाली होनेसे 'अत्रिलक्षणा' है। [३] महासत्ता समस्त पदार्थसमूहमें 'सत्, सत्, सत्' ऐसा समानपना दर्शाती है इसलिये एक है। एक वस्तुकी स्वरूपसत्ता अन्य किसी वस्तुकी स्वरूपसत्ता नहीं है, इसलिये जितनी वस्तुएँ उतनी स्वरूपसत्ताएँ; इसलिये ऐसी स्वरूपसत्ताएँ अथवा अवान्तरसत्ताएँ 'अनेक ' हैं।
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