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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन [२१ समस्तस्यापि वस्तुविस्तारस्य सादृश्यसूचकत्वादेका। सर्वपदार्थस्थिता च त्रिलक्षणस्य सदित्यभिधानस्य सदिति प्रत्ययस्य च सर्वपदार्थेषु तन्मूलस्यैवोपलम्भात्। सविश्वरूपा च विश्वस्य समस्तवस्तुविस्तारस्यापि रूपैस्त्रिलक्षणैः स्वभावै: सह वर्तमानत्वात्। अनन्तपर्याया चानन्ताभिर्द्रव्यपर्यायव्यक्तिभिस्त्रिलक्षणाभिः परिगम्यमानत्वात् एवंभूतापि सा न खलु निरकुशा किन्तु सप्रतिपक्षा। प्रतिपक्षो ह्यसत्ता सत्तायाः अविलक्षणत्वं त्रिलक्षणायाः, अनेकत्वमेकस्याः, एकपदार्थस्थितत्वं सर्वपदार्थस्थितायाः, एकरूपत्वं सविश्वरूपायाः, एकपर्यायत्वमनन्तपर्यायाया इति। 'उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक' [त्रिलक्षणा] जानना; क्योंकि भाव और भाववानका कथंचित् एक स्वरूप होता है। और वह [ सत्ता] 'एक' है, क्योंकि वह त्रिलक्षणवाले समस्त वस्तुविस्तारका सादृश्य सूचित करती है। और वह [ सत्ता] ' सर्वपदार्थस्थित' है; क्योंकि उसके कारण ही [-सत्ताके कारण ही] सर्व पदार्थोमें त्रिलक्षणकी [-उत्पादव्ययध्रौव्यकी], 'सत्' ऐसे कथनकी तथा 'सत' ऐसी प्रतीतिकी उपलब्धि होती है। और वह [ सत्ता] 'सविश्वरूप' है, क्योंकि वह विश्वके रूपों सहित अर्थात् समस्त वस्तुविस्तारके त्रिलक्षणवाले स्वभावों सहित वर्तती है। और वह [ सत्ता] 'अनंतपर्यायमय' है। क्योंकि वह त्रिलक्षणवाली अनन्त द्रव्यपर्यायरूप व्यक्तियोंसे व्याप्त है। [इसप्रकार सामान्य-विशेषात्मक सत्ताका उसके सामान्य पक्षकी अपेक्षासे अर्थात् महासत्तारूप पक्षकी अपेक्षासे वर्णन हुआ।] ऐसी होने पर भी वह वास्तवमें 'निरंकुश नहीं है किन्तु सप्रतिपक्ष है। [१] सत्ताको असत्ता प्रतिपक्ष है; [२] त्रिलक्षणाको अत्रिलक्षणपना प्रतिपक्ष है; [३] एकको अनेकपना प्रतिपक्ष है; [४] सर्वपदार्थस्थितको एकपदार्थस्थितपना प्रतिपक्ष है; [५] सविश्वरूपको एकरूपपना प्रतिपक्ष है; |६ अनन्तपर्यायमयको एकपर्यायमयपना प्रतिपक्ष है। १। सत्ता भाव है और वस्तु भाववान है। २। यहाँ 'सामान्यात्मक'का अर्थ 'महा' समझना चाहिये और विशेषात्मक' का अर्थ 'अवान्तर' समझना चाहिये। सामान्य विशेषके दूसरे अर्थ यहाँ नहीं समझना। ३। निरंकुश अंकुश रहित; विरुद्ध पक्ष रहित ; नि:प्रतिपक्ष। [सामान्यविशेषात्मक सत्ताका ऊपर जो वर्णन किया है वैसी होने पर भी सर्वथा वैसी नहीं है; कथंचित् [सामान्य-अपेक्षासे] वैसी है। और कथंचित् [ विशेषअपेक्षासे] विरुद्ध प्रकारकी है।] ४। सप्रतिपक्ष प्रतिपक्ष सहित; विपक्ष सहित; विरुद्ध पक्ष सहित। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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