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कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
पञ्चास्तिकायषड्द्रव्यप्रकारेण प्ररूपणम्। पूर्वं मूलपदार्थानामिह सूत्रकृता कृतम्।।४।। जीवाजीवद्विपर्यायरूपाणां चित्रवर्त्मनाम्। ततोनवपदार्थानां व्यवस्था प्रतिपादिता।।५।। ततस्तत्त्वपरिज्ञानपूर्वेण त्रितयात्मना। प्रोक्ता मार्गेण कल्याणी मोक्षप्राप्तिरपश्चिमा।।६।।
[श्लोकार्थ:-] यहाँ प्रथम *सुत्रकर्ताने मूल पदार्थोंका पंचास्तिकाय एवं षड्द्रव्यके प्रकारसे प्ररूपण किया है [अर्थात् इस शास्त्रके प्रथम अधिकारमें श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने विश्वके मूल पदार्थोंका पाँच अस्तिकाय और छह द्रव्यकी पद्धतिसे निरूपण किया है। [४]
[श्लोकार्थः-] पश्चात् [ दूसरे अधिकारमें ], जीव और अजीव- इन दो की पर्यायोंरूप नव पदार्थोंकी-कि जिनके मार्ग अर्थात् कार्य भिन्न-भिन्न प्रकारके हैं उनकी-व्यवस्था प्रतिपादित की है।
[श्लोकार्थ:-] पश्चात् [दूसरे अधिकारके अन्तमें] , तत्त्वके परिज्ञानपूर्वक [ पंचास्तिकाय, षड्द्रव्य तथा नव पदार्थोंके यथार्थ ज्ञानपूर्वक ] त्रयात्मक मार्गसे [ सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्रात्मक मार्गसे ] कल्याणस्वरूप उत्तम मोक्षप्राप्ति कही है। [६]
* इस शास्त्रके कर्ता श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव हैं। उनके दूसरे नाम पद्मनंदी, वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य और गृद्धपिच्छाचार्य हैं। श्री जयसेनाचार्यदेव इस शास्त्रकी तात्पर्यवृत्ति नामक टीका प्रारम्भ करते हुए लिखते हैं कि:-- 'अब श्री कुमारनंदी-सिद्धांतिदेवके शिष्य श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवनेजिनके दूसरे नाम पद्मनंदी आदि थे उन्होंने – प्रसिद्धकथान्यायसे पूर्वविदेहमें जाकर वीतरागसर्वज्ञ सीमंधरस्वामी तीर्थंकरपरमदेवके दर्शन करके, उनके मुखकमलसे नीकली हुई दिव्य वाणीके श्रवणसे अवधारित पदार्थ द्वारा शुद्धात्मतत्त्वादि सारभूत अर्थ ग्रहण करके, वहाँसे लौटकर अंतःतत्त्व एवं बहिःतत्त्वके गौण-मुख्य प्रतिपादनके हेतु अथवा शिवकुमारमहाराजादि संक्षेपरुचि शिष्योंके प्रतिबोधनार्थ रचे हुए पंचास्तिकायप्राभृतशास्त्रका यथाक्रमसे अधिकारशुद्धिपूर्वक तात्पर्यार्थरूप व्याख्यान किया जाता है।
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