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२६२] पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द मार्गप्रभावनार्थं प्रवचनभक्तिप्रचोदितेन मया।
भणितं प्रवचनसारं पञ्चास्तिकसंग्रहं सूत्रम्।। १७३।। कर्तुः प्रतिज्ञानियूंढिसूचिका समापनेयम् । मार्गो हि परमवैराग्यकरणप्रवणा पारमेश्वरी परमाज्ञा; तस्या प्रभावनं प्रख्यापनद्वारेण प्रकृष्टपरिणतिद्वारेण वा समुद्योतनम्; तदर्थमेव परमागमानुरागवेगप्रचलितमनसा संक्षेपतः समस्तवस्तुतत्त्वसूचकत्वादतिविस्तृतस्यापि
गाथा १७३
अन्वयार्थः- [प्रवचनभक्तिप्रचोदितेन मया ] प्रवचनकी भक्तिसे प्रेरित ऐसे मैने [ मार्गप्रभावनार्थं ] मार्गकी प्रभावके हेतु [प्रवचनसारं] प्रवचनके सारभूत [ पञ्चास्तिकसंग्रहं सूत्रम् ] ‘पंचास्तिकायसंग्रह' सूत्र [ भणितम् ] कहा।
टीका:- यह, कर्ताकी प्रतिज्ञाकी पूर्णता सूचितवाली समाप्ति है [ अर्थात् यहाँ शास्त्रकर्ता श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव अपनी प्रतिज्ञाकी पूर्णता सूचित करते हुए शास्त्रसमाप्ति करते हैं ] ।
मार्ग अर्थात् परम वैराग्य की ओर ढलती हुई पारमेश्वरी परम आज्ञा [अर्थात् परम वैराग्य करनेकी परमेश्वरकी परम आज्ञा ]; उसकी प्रभावना अर्थात् प्रख्यापन द्वारा अथवा प्रकृष्ट परिणति द्वारा उसका समुद्योत करना; [ परम वैराग्य करनेकी जिनभगवानकी परम आज्ञाकी प्रभावना अर्थात् [१] उसकी प्रख्याति-विज्ञापन-करने द्वारा अथवा [२] परमवैराग्यमय प्रकृष्ट परिणमन द्वारा, उसका सम्यक् प्रकारसे उद्योत करना; ] उसके हेतु ही [-मार्गकी प्रभावनाके लिये ही], परमागमकी ओरके अनुरागके वेगसे जिसका मन अति चलित होता था ऐसे मैंने यह ‘पंचास्तिकायसंग्रह' नामका सूत्र कहा-जो कि भगवान सर्वज्ञ द्वारा उपज्ञ होनेसे [-वीतराग सर्वज्ञ जिनभगवानने स्वयं जानकर प्रणीत किया होनेसे ] ‘सूत्र' है, और जो संक्षेपसे समस्तवस्तुतत्त्वका [ सर्व वस्तुओंके यथार्थ स्वरूपका] प्रतिपादन करता होनेसे , अति विस्तृत ऐसे भी प्रवचनके सारभूत हैं [-द्वादशांगरूपसे विस्तीर्ण ऐसे भी जिनप्रवचनके सारभूत हैं]।
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