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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक-मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन [२३१ साधनभावं निश्चयनयमाश्रित्य मोक्षमार्गप्ररूपणम्। यत्तु पूर्वमुदृिष्टं तत्स्वपरप्रत्ययपर्यायाश्रितं भिन्नसाध्यसाधनभावं व्यवहारनयमाश्रित्य प्ररुपितम्। न चैतद्विप्रतिषिद्धं निश्चयव्यवहारयोः साध्यसाधनभावत्वात्सुवर्णसुवर्णपाषाणवत्। अत एवोभयनयायत्ता पारमेश्वरी तीर्थप्रवर्तनेति।। १५९ ।। - - - - - - - - पर्यायके आश्रित, 'भिन्नसाध्यसाधनभाववाले व्यवहारनयके आश्रयसे [–व्यवहारनयकी अपेक्षासे ] प्ररूपित किया गया था। इसमें परस्पर विरोध आता है ऐसा भी नहीं है, क्योंकि सुर्वण और सुर्वणपाषाणकी भाँति निश्चय–व्यवहारको साध्य-साधनपना है; इसलिये पारमेश्वरी [जिनभगवानकी ] 'तीर्थप्रवर्तना दोनों नयोंके आधीन है।। १५९ ।। १। जिस नयमें साध्य तथा साधन भिन्न हों [ –भिन्न प्ररूपित किये जाएँ] वह यहाँ व्यवहारनय है; जैसे कि, छठवें गुणस्थानमें [द्रव्यार्थिकनयके विषयभूत शुद्धात्मस्वरूपके आंशिक आलम्बन सहित] वर्तते हुए तत्त्वार्थश्रद्धान [नवपदार्थसम्बन्धी श्रद्धान ], तत्त्वार्थज्ञान और पंचमहाव्रतादिरूप चारित्र व्यवहारनयसे मोक्षमार्ग है क्योंकि [ मोक्षरूप] साध्य स्वहेतुक पर्याय है और [ तत्त्वार्थश्रद्धानादिमय मोक्षमार्गरूप] साधन स्वपरहेतुक पर्याय है। २। जिस पाषाणमें सुवर्ण हो उसे सुवर्णपाषाण कहा जाता है। जिस प्रकार व्यवहारनयसे सुवर्णपाषाण सुवर्णका साधन है, उसी प्रकार व्यवहारनयसे व्यवहारमोक्षमार्ग निश्चयमोक्षमार्गका साधन है; अर्थात् व्यवहारनयसे भावलिंगी मुनिको सविकल्प दशामें वर्तते हुए तत्त्वार्थश्रद्धान, तत्त्वार्थज्ञान और महाव्रतादिरूप चारित्र निर्विकल्प दशामें वर्तते हुए शुद्धात्मश्रद्धानज्ञानानुष्ठाननके साधन हैं। ३। तीर्थ मार्ग [ अर्थात् मोक्षमार्ग ]; उपाय [अर्थात् मोक्षका उपाय ]; उपदेश; शासन। ४। जिनभगवानके उपदेशमें दो नयों द्वारा निरूपण होता है। वहाँ, निश्चयनय द्वारा तो सत्यार्थ निरूपण किया जाता है और व्यवहारनय द्वारा अभूतार्थ उपचरित निरूपण किया जाता है। प्रश्न:- सत्यार्थ निरूपण ही करना चाहिये; अभूतार्थ उपचरित निरूपण किसलिये किया जाता है ? उत्तर:- जिसे सिंहका यथार्थ स्वरूप सीधा समझमें न आता हो उसे सिंहके स्वरूपके उपचरित निरूपण द्वारा अर्थात् बिल्लीके स्वरूपके निरूपण द्वारा सिंहके यथार्थ स्वरूपकी समझ की ओर ले जाते हैं, उसी प्रकार जिसे वस्तुका यथार्थ स्वरूप सीधा समझमें न आता हो उसे वस्तुस्वरूपके उपचरित निरूपण द्वारा वस्तुस्वरूपकी यथार्थ समझ की ओर ले जाते हैं। और लम्बे कथनके बदलेमें संक्षिप्त कथन करनेके लिए भी व्यवहारनय द्वारा उपचरित निरूपण किया जाता है। यहाँ इतना लक्षमें रखनेयोग्य है कि - जो पुरुष बिल्लीके निरूपणको ही सिंहका निरूपण मानकर बिल्लीको ही सिंह समझ ले वह तो उपदेशके ही योग्य नहीं है, उसी प्रकार जो पुरुष उपचरित निरूपणको ही सत्यार्थ निरूपण मानकर वस्तुस्वरूपको मिथ्या रीतिसे समझ बैठे वह तो उपदेशके ही योग्य नहीं है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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