SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ९० १०८ १०९ विषय गाथा | विषय गाथा धर्म और अधर्मके उदासीनपने दुःखसे विमुक्त होनेका क्रमका कथन १०४ सम्बन्धी हेतु ८९ २, नवपदार्थपुर्वक मोक्षमार्गप्रपंच वर्णन *आकाशद्रव्यास्तिकाय व्याख्यान | आप्तकी स्तुतिपूर्वक प्रतिज्ञा १०५ आकाशका स्वरूप मोक्षमार्गकी सूचना १०६ लोकके बाहर भी आकाश होनेकी | स्म्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी सूचना १०७ सूचना | आकाशमें गतिहेतुत्व होनेमें पदार्थों के नाम और स्वरूपका कथन दोषका निरूपण | ९२ | * जीवपदार्थका व्याख्यान * ९२ वीं गाथा में गतिपक्षसम्बन्धी कथन जीवके स्वरूपका कथन करनेके पश्चात स्थितिपक्षसम्बन्धी | संसारी जीवोंके भेदोंमेंसे पृथ्वीकायिक कथन आकाशको गतिस्थितिहेतुत्वका आदि पाँच भेदोंका कथन अभाव होनेके सम्बन्धमें हेतु | ९४ । पृथ्वीकायिक आदि पंचविध जीवोंके आकाशको गतिस्थितिहे होनेके स्थावरत्रसपने सम्बन्धी कथन खण्डन सम्बन्धी कथनका उपसंहार । ९५ पृथ्वीकायिक आदि पंचविध जीवोंके । धर्म, अ धर्म और लोकाकाशका। एकेन्द्रियपनेका नियम ११२ अवगाहकी अपेक्षासे एकत्व होनेपर भी एकेन्द्रियोंको चेतन्यका अस्तित्व वस्तुरूपसे अन्यत्व | होने सम्बन्धी दृष्टान्त ११३ * चूलिका * द्रीन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सचना | द्रव्योंका मूर्तामूर्तपना और | त्रीन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना । ११५ चेतनाचेतनपना ९७ चतुरिन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना ११६ | द्रव्योंका सक्रिय- निष्क्रियपना ९८ पंचेन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना ११७ | मूर्त और अमूर्तके लक्षण ९९ | एकेन्द्रियादि जीवोंका चतुर्गतिसम्बन्ध * कालद्रव्यका व्याख्यान * दर्शाकर उन जीवभेदोंका उपसंहार | ११८ व्यवहारकाल तथा निश्चयकालका | गतिनामकर्म और आयुकमेक उदतसे स्वरूप कालके 'नित्य' और 'क्षणिक' ऐसे निष्पन्न होनेके कारण देवत्वादिका दो विभाग अनात्मस्वभावपना कालको द्रव्यपनेका विधान और | पूर्वोक्त जीवविस्तारका उपसंहार १२० अस्तिकायपनेका निषेध । १०२ | व्यवहार जीवत्वके एकान्तकी * उपसंहार * प्रतिपत्तीका खण्डन | पंचास्तिकातके अवबोधका फल | अन्यसे असाधारण ऐसे जीवकार्योंका कहकर उसके व्याख्यानका उपसंहार । १०३ । कथन ११४ १०० १०१ १२१ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy