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विषय गाथा | विषय
गाथा धर्म और अधर्मके उदासीनपने
दुःखसे विमुक्त होनेका क्रमका कथन १०४ सम्बन्धी हेतु
८९ २, नवपदार्थपुर्वक मोक्षमार्गप्रपंच वर्णन *आकाशद्रव्यास्तिकाय व्याख्यान | आप्तकी स्तुतिपूर्वक प्रतिज्ञा
१०५ आकाशका स्वरूप
मोक्षमार्गकी सूचना
१०६ लोकके बाहर भी आकाश होनेकी | स्म्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी सूचना
१०७ सूचना | आकाशमें गतिहेतुत्व होनेमें
पदार्थों के नाम और स्वरूपका कथन दोषका निरूपण
| ९२ | * जीवपदार्थका व्याख्यान * ९२ वीं गाथा में गतिपक्षसम्बन्धी कथन जीवके स्वरूपका कथन करनेके पश्चात स्थितिपक्षसम्बन्धी
| संसारी जीवोंके भेदोंमेंसे पृथ्वीकायिक कथन आकाशको गतिस्थितिहेतुत्वका
आदि पाँच भेदोंका कथन अभाव होनेके सम्बन्धमें हेतु
| ९४ । पृथ्वीकायिक आदि पंचविध जीवोंके आकाशको गतिस्थितिहे होनेके
स्थावरत्रसपने सम्बन्धी कथन खण्डन सम्बन्धी कथनका उपसंहार । ९५ पृथ्वीकायिक आदि पंचविध जीवोंके । धर्म, अ धर्म और लोकाकाशका।
एकेन्द्रियपनेका नियम
११२ अवगाहकी अपेक्षासे एकत्व होनेपर भी
एकेन्द्रियोंको चेतन्यका अस्तित्व वस्तुरूपसे अन्यत्व | होने सम्बन्धी दृष्टान्त
११३ * चूलिका *
द्रीन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सचना | द्रव्योंका मूर्तामूर्तपना और
| त्रीन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना । ११५ चेतनाचेतनपना
९७ चतुरिन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना ११६ | द्रव्योंका सक्रिय- निष्क्रियपना ९८ पंचेन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना
११७ | मूर्त और अमूर्तके लक्षण
९९ | एकेन्द्रियादि जीवोंका चतुर्गतिसम्बन्ध * कालद्रव्यका व्याख्यान
* दर्शाकर उन जीवभेदोंका उपसंहार | ११८ व्यवहारकाल तथा निश्चयकालका
| गतिनामकर्म और आयुकमेक उदतसे स्वरूप कालके 'नित्य' और 'क्षणिक' ऐसे
निष्पन्न होनेके कारण देवत्वादिका दो विभाग
अनात्मस्वभावपना कालको द्रव्यपनेका विधान और | पूर्वोक्त जीवविस्तारका उपसंहार
१२० अस्तिकायपनेका निषेध
। १०२ | व्यवहार जीवत्वके एकान्तकी * उपसंहार *
प्रतिपत्तीका खण्डन | पंचास्तिकातके अवबोधका फल
| अन्यसे असाधारण ऐसे जीवकार्योंका कहकर उसके व्याख्यानका उपसंहार । १०३ । कथन
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