________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कहानजैनशास्त्रमाला]
नवपदार्थपूर्वक-मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
[२२३
मोक्षमार्गस्वरूपाख्यानमेतत्।
जीवस्वभावनियतं चरितं मोक्षमार्गः। जीवस्वभावो हि ज्ञानदर्शने अनन्यमयत्वात्। अनन्यमयत्वं च तयोर्विशेषसामान्यचैतन्यस्वभावजीवनिवृत्तत्वात्। अथ तयोर्जीवस्वरूपभूतयोनिदर्शनयोर्यन्नियतमवस्थितमुत्पादव्ययध्रौव्यरूपवृत्तिमयमस्तित्वं रागादिपरिणत्यभावादनिन्दितं तचरितं; तदेव मोक्षमार्ग इति। द्विविधं हि किल संसारिषु चरितं- स्वचरितं परचरितं च; स्वसमयपरसमयावित्यर्थः। तत्र स्वभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं स्वचरितं, परभावावस्थितास्तित्वस्वरूपं परचरितम्। तत्र यत्स्व
गाथा १५४
अन्वयार्थ:- [जीवस्वभावं] जीवका स्वभाव [ज्ञानम् ] ज्ञान और [अप्रतिहत-दर्शनम् ] अप्रतिहत दर्शन है- [अनन्यमयम् ] जो कि [ जीवसे ] अनन्यमय है। [ तयोः] उन ज्ञानदर्शनमें [ नियतम् ] नियत [अस्तिवम् ] अस्तित्व- [अनिन्दितं] जो कि अनिंदित है- [चारित्रं च भणितम् ] उसे [ जिनेन्द्रोंने ] चारित्र कहा है।
टीका:- यह, मोक्षमार्गके स्वरूपका कथन है।
जीवस्वभावमें नियत चारित्र वह मोक्षमार्ग है। जीवस्वभाव वास्तवमें ज्ञान-दर्शन है क्योंकि वे [जीवसे] अनन्यमय हैं। ज्ञानदर्शनका [जीवसे] अनन्यमयपना होनेका कारण यह है कि 'विशेषचैतन्य और सामान्यचैतन्य जिसका स्वभाव है ऐसे जीवसे वे निष्पन्न हैं [ अर्थात् जीव द्वारा ज्ञानदर्शन रचे गये हैं। अब जीवके स्वरूपभूत ऐसे उन ज्ञानदर्शनमें नियत-अवस्थित ऐसा जो उत्पादव्ययध्रौव्यरूप वृत्तिमय अस्तित्व- जो कि रागादिपरिणामके अभावके कारण अनिंदित है - वह चारित्र है; वही मोक्षमार्ग है।
संसारीयोंमें चारित्र वास्तवमें दो प्रकारका है:- [१] स्वचारित्र और [२] परचारित्र; [१]स्वसमय और [२] परसमय ऐसा अर्थ है। वहाँ, स्वभावमें अवस्थित अस्तित्वस्वरूप [चारित्र] वह स्वचारित्र है और परभावमें अवस्थित अस्तित्वस्वरूप [ चारित्र] वह परचारित्र है। उसमेंसे
१। विशेषचैतन्य वह ज्ञान है और सामान्यचैतन्य वह दर्शन है।
२। नियत=अवस्थित; स्थित; स्थिर; दृढ़रूप स्थित।
३। वृत्ति वर्तना; होना। [ उत्पादव्ययध्रौव्यरूप वृत्ति वह अस्तित्व है।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com