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________________ कहानजैनशास्त्रमाला ] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अथ बंधपदार्थव्याख्यानम् । नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन जं सुहमसुहमुदिणं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा । सो तेण हवदि बद्धो पोग्गलकम्मेण विविहेण । । १४७ ।। यं शुभमशुभमुदीर्णं भावं रक्तः करोति यद्यात्मा । स तेन भवति बद्धः पुद्गलकर्मणा विविधेन ।। १४७।। बन्धस्वरूपाख्यानमेतत्। यदि खल्वयमात्मा परोपाश्रयेणानादिरक्तः कर्मोदयप्रभावत्वादुदीर्णं शुभमशुभं वा भावं करोति, तदा स आत्मा तेन निमित्तभूतेन भावेन पुद्गलकर्मणा विविधेन बद्धो भवति । तदत्र मोहरागद्वेषस्निग्धः शुभोऽशुभो वा परिणामो जीवस्य भावबन्ध:, तन्निमित्तेन शुभाशुभकर्मत्वपरिणतानां जीवेन सहान्योन्यमूर्च्छनं पुद्गलानां द्रव्यबन्ध इति ।। १४७।। अब बंन्धपदार्थका व्याख्यान है । [ २९३ गाथा १४७ अन्वयार्थ:- [ यदि ] यदि [आत्मा ] आत्मा [ रक्तः ] रक्त [ विकारी ] वर्तता हुआ [ उदीर्णं ] उदित [यम् शुभम् अशुभम् भावम्] शुभ या अशुभ भावको [ करोति ] करता है, तो [ सः ] वह आत्मा [तेन] उस भाव द्वारा - उस भावके निमित्तसे ] [ विविधेन पुद्गलकर्मणा ] विविध पुद्गलकर्मोंसे [ बद्धः भवति ] बद्ध होता है। टीका :- यह, बन्धके स्वरूपका कथन है । यदि वास्तवमें यह आत्मा अन्यके [ - पुद्गलकर्मके ] आश्रय द्वारा अनादि कालसे रक्त रहकर कर्मोदयके प्रभावयुक्तरूप वर्तनेसे उदित [ - प्रगट होनेवाले ] शुभ या अशुभ भावको करता है, तो वह आत्मा उस निमित्तभूत भाव द्वारा विविध पुद्गलकर्मसे बद्ध होता है। इसलिये यहाँ [ ऐसा कहा है कि ], मोहरागद्वेष द्वारा स्निग्ध ऐसे जो जीवके शुभ या अशुभ परिणाम वह भावबन्ध है और उसके [ - शुभाशुभ परिणामके ] निमित्तसे शुभाशुभ कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य अवगाहन [ –विशिष्ट शक्ति सहित एकक्षेत्रावगाहसम्बन्ध ] वह द्रव्य बन्ध है ।। १४७।। जो आतमा उपरक्त करतो अशुभ वा शुभ भावने, तो ते वडे ओ विविध पुद्गलकर्मथी बंधाय छे। १४७। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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