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कहानजैनशास्त्रमाला ]
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अथ बंधपदार्थव्याख्यानम् ।
नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
जं सुहमसुहमुदिणं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा । सो तेण हवदि बद्धो पोग्गलकम्मेण विविहेण । । १४७ ।।
यं शुभमशुभमुदीर्णं भावं रक्तः करोति यद्यात्मा ।
स तेन भवति बद्धः पुद्गलकर्मणा विविधेन ।। १४७।।
बन्धस्वरूपाख्यानमेतत्।
यदि खल्वयमात्मा परोपाश्रयेणानादिरक्तः कर्मोदयप्रभावत्वादुदीर्णं शुभमशुभं वा भावं करोति, तदा स आत्मा तेन निमित्तभूतेन भावेन पुद्गलकर्मणा विविधेन बद्धो भवति । तदत्र मोहरागद्वेषस्निग्धः शुभोऽशुभो वा परिणामो जीवस्य भावबन्ध:, तन्निमित्तेन शुभाशुभकर्मत्वपरिणतानां जीवेन सहान्योन्यमूर्च्छनं पुद्गलानां द्रव्यबन्ध इति ।। १४७।।
अब बंन्धपदार्थका व्याख्यान है ।
[ २९३
गाथा १४७
अन्वयार्थ:- [ यदि ] यदि [आत्मा ] आत्मा [ रक्तः ] रक्त [ विकारी ] वर्तता हुआ [ उदीर्णं ] उदित [यम् शुभम् अशुभम् भावम्] शुभ या अशुभ भावको [ करोति ] करता है, तो [ सः ] वह आत्मा [तेन] उस भाव द्वारा - उस भावके निमित्तसे ] [ विविधेन पुद्गलकर्मणा ] विविध पुद्गलकर्मोंसे [ बद्धः भवति ] बद्ध होता है।
टीका :- यह, बन्धके स्वरूपका कथन है ।
यदि वास्तवमें यह आत्मा अन्यके [ - पुद्गलकर्मके ] आश्रय द्वारा अनादि कालसे रक्त रहकर कर्मोदयके प्रभावयुक्तरूप वर्तनेसे उदित [ - प्रगट होनेवाले ] शुभ या अशुभ भावको करता है, तो वह आत्मा उस निमित्तभूत भाव द्वारा विविध पुद्गलकर्मसे बद्ध होता है। इसलिये यहाँ [ ऐसा कहा है कि ], मोहरागद्वेष द्वारा स्निग्ध ऐसे जो जीवके शुभ या अशुभ परिणाम वह भावबन्ध है और उसके [ - शुभाशुभ परिणामके ] निमित्तसे शुभाशुभ कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य अवगाहन [ –विशिष्ट शक्ति सहित एकक्षेत्रावगाहसम्बन्ध ] वह द्रव्य बन्ध है ।। १४७।।
जो आतमा उपरक्त करतो अशुभ वा शुभ भावने, तो ते वडे ओ विविध पुद्गलकर्मथी बंधाय छे। १४७।
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