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कहानजैनशास्त्रमाला ]
नवपदार्थपूर्वक—मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
चरिया पमादबहुला कालुस्सं लोलदा य विसएसु । परपरिदावपवादो पावस्स य आसवं कुणदि । । ९३९ ।।
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चर्या प्रमादबहुला कालुष्यं लोलता च विषयेषु । परपरितापापवादः पापस्य चास्रवं करोति ।। १३९ ।।
पापास्रवस्वरूपाख्यानमेतत्।
प्रमादबहुलचर्यापरिणतिः, कालुष्यपरिणतिः, विषयलौल्यपरिणतिः, परपरितापपरिणतिः, परापवादपरिणतिश्चेति पञ्चाशुभा भावा द्रव्यपापास्रवस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणभूतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भावपापास्रवः। तन्निमित्तोऽशुभकर्मपरिणामो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानां द्रव्यपापास्रव इति।। १३९ ।।
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क्रोध, मान, माया और लोभके तीव्र उदयसे चित्तका क्षोभ सो कलुषता है। उन्हींके [ क्रोधादिके ही ] मंद उदयसे चित्तकी प्रसन्नता सो अकलुषता है । वह अकलुषता, कदाचित् कषायका विशिष्ट [–खास प्रकारका ] क्षयोपशम होने पर, अज्ञानीको होती है; कषायके उदयका अनुसरण करनेवाली परिणतिमेंसे उपयोगको 'असमग्ररूपसे विमुख किया हो तब [ अर्थात् कषायके उदयका अनुसरण करनेवाले परिणमनमेंसे उपयोगको पूर्ण विमुख न किया हो तब ], मध्यम भूमिकाओंमें [मध्यम गुणस्थानोंमें ], कदाचित् ज्ञानीको भी होती है ।। १३८ ।।
गाथा १३९
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अन्वयार्थ:- [ प्रमादबहुला चर्या ] बहु प्रमादवाली चर्या, [ कालुष्यं ] कलुषता, [ विषयेषु च लोलता ] विषयोंके प्रति लोलुपता, [ परपरितापापवादः ] परको परिताप करना तथा परके अपवाद बोलना-वह [ पापस्य च आस्रवं करोति ] पापका आस्रव करता है।
टीका:- यह, पापास्रवके स्वरूपका कथन है।
बहु प्रमादवाली चर्यारूप परिणति [ - अति प्रमादसे भरे हुए आचरणरूप परिणति ], कलुषतारूप परिणति, विषयलोलुपतारूप परिणति, परपरितापरूप परिणति [ - परको दुःख देनेरूप परिणति ] और परके अपवादरूप परिणति - यह पाँच अशुभ भाव द्रव्यपापास्रवको निमित्तमात्ररूपसे
१। असमग्ररूपसे
अपूर्णरूपसे; अधूरेरूपसे; अंशतः।
चर्या प्रमादभरी, कलुषता, लुब्धता विषयो विषे, परिताप ने अपवाद परना, पाप - आस्रवने करे । १३९ ।
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