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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवान श्रीकुन्दकुन्द
इस प्रकार यहाँ [ ऐसा कहा कि ], पुद्गलपरिणाम जिनका निमित्त है ऐसे जीवपरिणाम और जीवपरिणाम जिनका निमित्त है ऐसे पुद्गलपरिणाम अब आगे कहे जानेवाले [ पुण्यादि सात ] पदार्थोंके बीजरूप अवधारना।
भावार्थ:- जीव और पुद्गलको परस्पर निमित्त - नैमित्तिकरूपसे परिणाम होता है। उस परिणामके कारण पुण्यादि पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिनका वर्णन अगली गाथाओंमें किया जाएगा।
प्रश्न:- पुण्यादि सात पदार्थोंका प्रयोजन जीव और अजीव इन दो से ही पूरा हो जाता है, क्योंकि वे जीव और अजीवकी ही पर्यायें हैं। तो फिर वे सात पदार्थ किसलिए कहे जा रहे हैं ?
उत्तर:- भव्योंको हेय तत्त्व और उपादेय तत्त्व [ अर्थात् हेय और उपादेय तत्त्वोंका स्वरूप तथा उनके कारण ] दर्शानेके हेतु उनका कथन है । दुःख वह हेय तत्त्व है, उनका कारण संसार है, संसारका कारण आस्रव और बन्ध दो हैं [ अथवा विस्तारपूर्वक कहे तो पुण्य, पाप, आस्रव और बन्ध चार हैं ] और उनका कारण मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्र है । सुख वह उपादेय तत्त्व है, उसका कारण मोक्ष है, मोक्षका कारण संवर और निर्जरा है और उनका कारण सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र है। यह प्रयोजनभूत बात भव्य जीवोंको प्रगटरूपसे दर्शानेके हेतु पुण्यादि 'सात पदार्थोंका कथन है ।। १२८
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१। अज्ञानी और ज्ञानी जीव पुण्यादि सात पदार्थोंमेसें किन-किन पदार्थोंके कर्ता हैं तत्सम्बन्धी आचार्यवर श्री जयसेनाचार्यदेवकृत तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें निम्नोक्तानुसार वर्णन है:
अज्ञानी जीव निर्विकार स्वसंवेदनके अभावके कारण पापपदार्थका तथा आस्रव-बंधपदार्थोंका कर्ता होता है; कदाचित् मंद मिथ्यात्वके उदयसे देखे हुए- सुने हुए - अनुभव किए हुए भोगोकी आकांक्षारूप निदानबन्ध द्वारा, भविष्यकालमें पापका अनुबन्ध करनेवाले पुण्यपदार्थका भी कर्ता होता है। जो ज्ञानी जीव है वह, निर्विकार-आत्मतत्त्वविषयक रुचि, तद्विषयक ज्ञप्ति और तद्विषयक निश्चल अनुभूतिरूप अभेदरत्नत्रयपरिणाम द्वारा, संवर- निर्जरा - मोक्षपदार्थोंका कर्ता होता है; और जीव जब पूर्वोक्त निश्चयरत्नत्रयमें स्थिर नहीं रह सकता तब निर्दोषपरमात्मस्वरूप अर्हत- सिद्धोंकी तथा उनका [ निर्दोष परमात्माका ] आराधन करनेवाले आचार्य-उपाध्याय-साधुओंकी निर्भर असाधारण भक्तिरूप ऐसा जो संसारविच्छेदके कारणभूत, परम्परासे मुक्तिकारणभूत, तीर्थंकरप्रकृति आदि पुण्यका अनुबन्ध करनेवाला विशिष्ट पुण्य उसे अनीहितवृत्तिसे निदानरहित परिणामसे करता है। इस प्रकार अज्ञानी जीव पापादि चार पदार्थोंका कर्ता है और ज्ञानी संवरादि ती पदार्थोंका कर्ता है।
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