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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक-मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन [१६५ तत्त्वविनिश्चयबीजम्। तेषामेव मिथ्यादर्शनोदयान्नौयानसंस्कारादि स्वरूपविपर्ययेणाध्यवसीय-मानानां तन्निवृत्तौ समञ्जसाध्यवसायः सम्यग्ज्ञानं, मनाग्ज्ञानचेतनाप्रधानात्मतत्त्वोपलंभबीजम्। सम्यग्दर्शनज्ञानसन्निधानादमार्गेभ्यः समग्रेभ्यः परिच्युत्य स्वतत्त्वे विशेषेण रूढमार्गाणां सतामिन्द्रियानिन्द्रियविषयभूतेष्वर्थेषु रागद्वेषपूर्वकविकाराभावान्निर्विकारावबोधस्वभावः समभावश्चारित्रं, तदात्वायतिरमणीयमनणीयसोऽपुनर्भवसौख्यस्यैकबीजम्। इत्येष त्रिलक्षणो मोक्षमार्गः पुरस्तान्निश्चयव्यवहाराभ्यां व्याख्यास्यते। इह तु सम्यग्दर्शनज्ञानयोर्विषयभूतानां नवपदार्थानामुपोद्धातहेतुत्वेन सूचित इति।। १०७।। आत्मतत्त्वके 'विनिश्चयका बीज है। 'नौकागमनके संस्कारकी भाँति मिथ्यादर्शनके उदयके कारण जो स्वरूपविपर्ययपूर्वक अध्यवसित होते हैं [ अर्थात् विपरीत स्वरूपसे समझमें आते हैं - भासित होते हैं] ऐसे उन ‘भावों' का ही [-नव पदार्थोंका ही ], मिथ्यादर्शनके उदयकी निवृत्ति होने पर, जो सम्यक् अध्यवसाय [ सत्य समझ, यथार्थ अवभास, सच्चा अवबोध ] होना, वह सम्यग्ज्ञान है - जो कि [ सम्यग्ज्ञान] कुछ अंशमें ज्ञानचेतनाप्रधान आत्मतत्त्वकी उपलब्धिका [अनुभूतिका] बीज है। सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके सद्भावके कारण समस्त अमार्गोंसे छूटकर जो स्वतत्त्वमें विशेषरूपसे रूढ़ मार्गवाले हुए हैं उन्हें इन्द्रिय और मनके विषयभूत पदार्थोंके प्रति रागद्वेषपूर्वक विकारके अभावके कारण जो निर्विकारज्ञानस्वभाववाला समभाव होता है, वह चारित्र है - जो कि [ चारित्र] उस कालमें और आगामी कालमें रमणीय है और अपुनर्भवके [ मोक्षके ] महा सौख्यका एक बीज है। -ऐसे इस त्रिलक्षण [ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रात्मक ] मोक्षमार्गका आगे निश्चय और व्यवहारसे व्याख्यान किया जाएगा। यहाँ तो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके विषयभूत नव पदार्थों के उपोद्घातके हेतु रूपसे उसकी सूचना दी गई है।। १०७।। * यहाँ 'संस्कारादि के बदले जहाँ तक सम्भव है 'संस्कारादिव' होना चाहिये ऐसा लगता है। १। विनिश्चय = निश्चय; दृढ़ निश्चय। २। जिस प्रकार नावमें बैठे हुए किसी मनुष्यको नावकी गतिके संस्कारवश, पदार्थ विपरीत स्वरूपसे समझमें आते हैं [अर्थात् स्वयं गतिमान होने पर भी स्थिर हो ऐसा समझमें आता है और वृक्ष, पर्वत आदि स्थिर होने पर भी गतिमान समझमें आते हैं], उसी प्रकार जीवको मिथ्यादर्शनके उदयवश नव पदार्थ विपरीत स्वरूपसे समझमें आते हैं। ३। रूढ़ = पक्का; परिचयसे दृढ़ हुआ। [सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके कारण जिनका स्वतत्त्वगत मार्ग विशेष रूढ़ हुआ है उन्हें इन्द्रियमनके विषयोंके प्रति रागद्वेषके अभावके कारण वर्तता हुआ निर्विकारज्ञानस्वभावी समभाव वह चारित्र है । ४। उपोद्घात = प्रस्तावना [ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है। मोक्षमार्गके प्रथम दो अंग जो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान उनके विषय नव पदार्थ हैं; इसलिये अब अगली गाथाओंमें नव पदार्थोंका व्यख्यान किया जाता है। मोक्षमार्गका विस्तृत व्यख्यान आगे जायेगा। यहाँ तो नव पदार्थों के व्यख्यानकी प्रस्तावना के हेतुरूपसे उसकी मात्र सूचना दी गई है।] गली गाथामि नव पदार्थों का व्याख्यान किया जाता Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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