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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन [ १५७ एवं पवयणसारं पंचत्थियसंगहं वियाणित्ता। जो मुयदि रागदासे सो गाहदि दुक्खपरिमोक्खं ।। १०३।। एवं प्रवचनसार पञ्चास्तिकायसंग्रहं विज्ञाय। यो मुञ्चति रागद्वेषौ स गाहते दुःखपरिमोक्षम्।। १०३।। तदवबोधफलपुरस्सरः पञ्चास्तिकायव्याख्योपसंहारोऽयम्। न खलु कालकलितपञ्चास्तिकायेभ्योऽन्यत् किमपि सकलेनापि प्रवचनेन प्रतिपाद्यते। ततः प्रवचनसार एवायं पञ्चास्तिकायसंग्रहः। यो हि नामामु समस्तवस्तुतत्त्वाभिधायिनमर्थतोऽर्थितयावबुध्यात्रैव जीवास्तिकायांतर्गतमात्मानं स्वरूपेणात्यंतविशुद्धचैतन्यस्वभावं निश्चित्य पर गाथा १०३ अन्वयार्थ:- [ एवम् ] इस प्रकार [प्रवचनसारं] प्रवचनके सारभूत [पञ्चास्तिकायसंग्रहं] ‘पंचास्तिकायसंग्रह 'को [ विज्ञाय ] जानकर [ यः ] जो [ रागद्वेषौ ] रागद्वेषको [ मुञ्चति ] छोड़ता है, [ सः ] वह [ दुःखपरिमोक्षम् गाहते ] दुःखसे परिमुक्त होता है। टीका:- यहाँ पंचास्तिकायके अवबोधका फल कहकर पंचास्तिकायके व्याख्यानका उपसंहार किया गया है। वास्तवमें सम्पूर्ण [द्वादशांगरूपसे विस्तीर्ण] प्रवचन काल सहित पंचास्तिकायसे अन्य कुछ भी प्रतिपादित नहीं करता: इसलिये प्रवचनका सार ही यह पंचास्तिकायसंग्रह' है। जो पुरुष समस्तवस्तुतत्त्वका कथन करनेवाले इस ‘पंचास्तिकायसंग्रह' को अर्थत: अर्थीरूपसे जानकर, १। अर्थत=अर्थानुसार; वाच्यका लक्षण करके; वाच्यसापेक्ष; यथार्थ रीतिसे। २। अर्थीरूपसे गरजीरूपसे; याचकरूपसे; सेवकरूपसे; कुछ प्राप्त करने के प्रयोजनसे [अर्थात हितप्राप्तिके हेतुसे]। ओ रीते प्रवचनसाररूप 'पंचास्तिसंग्रह' जाणीने जे जीव छोडे रागद्वेष , लहे सकलदुखमोक्षने। १०३ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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