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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १०४] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द निश्चयेन जीवस्य स्वभावानां कर्तृत्वं पुद्गलकर्मणामकर्तृत्वं चागमेनोपदर्शितमत्र इति।।६।। कम्मं पि सगं कुव्वदि सेण सहावेण सम्ममप्पाणं। जीवो वि य तारिसओ कम्मसहावेण भावेण ।।६२।। कर्मापि स्वकं करोति स्वेन स्वभावेन सम्यगात्मानम्। जीवोऽपि च तादृशक: कर्मस्वभावेन भावेन।।६२।। अत्र निश्चयनयेनाभिन्नकारकत्वात्कर्मणो जीवस्य च स्वयं स्वरूपकर्तृत्वमुक्तम्। कर्म खलु कर्मत्वप्रवर्तमानपुद्गलस्कंधरूपेण कर्तृतामनुबिभ्राणं, कर्मत्वगमनशक्तिरूपेण करणतामात्मसात्कुर्वत्, प्राप्यकर्मत्वपरिणामरूपेण कर्मतां कलयत्, पूर्वभावव्यपायेऽपि ध्रुवत्वालंबनादुपात्तापादानत्वम्, उपजायमानपरिणामरूपकर्मणाश्रीयमाणत्वादुपोढसंप्रदानत्वम्, आधीयमानपरिणामाधारत्वाद्गृहीताधिकरणत्वं, स्वयमेव षट्कारकीरूपेण व्यवतिष्ठमानं न कारकांतरमपेक्षते। --........ टीकाः- निश्चयसे जीवको अपने भावोंका कर्तृत्व है और पुद्गलकर्मोंका अकर्तृत्व है ऐसा यहाँ आगम द्वारा दर्शाया गया है।। ६१।। गाथा ६२ अन्वयार्थ:- [कर्म अपि] कर्म भी [स्वेन स्वभावेन ] अपने स्वभावसे [ स्वकं करोति] अपनेको करते हैं [ च ] और [ तादृशक: जीवः अपि] वैसा जीव भी [ कर्मस्वभावेन भावेन ] कर्मस्वभाव भावसे [-औदयिकादि भावसे ] [ सम्यक् आत्मानम् ] बराबर अपनेको करता है। टीका:- निश्चयनयसे अभिन्न कारक होनेसे कर्म और जीव स्वयं स्वरूपके [-अपने-अपने रूपके ] कर्ता है ऐसा यहाँ कहा है। कर्म वास्तवमें [१] कर्मरूपसे प्रवर्तमान पुद्गलस्कंधरूपसे कर्तृत्वको धारण करता हुआ, [२] कर्मपना प्राप्त करनेकी शक्तिरूप करणपनेको अंगीकृत करता हुआ, [३] प्राप्य ऐसे कर्मत्वपरिणामरूपसे कर्मपनेका अनुभव करता हुआ, [४] पूर्व भावका नाश हो जाने पर भी ध्रुवत्वको अवलम्बन करनेसे जिसने अपादानपनेको प्राप्त किया है ऐसा, [५] उत्पन्न होने वाले परिणामरूप कर्म द्वारा समाश्रित होनेसे [अर्थात् उत्पन्न होने वाले परिणामरूप कार्य अपनेको दिया जानेसे] रे! कर्म आपस्वभावथी निज कर्मपर्ययने करे, आत्माय कर्मस्वभावरूप निज भावथी निजने करे।६२। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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