________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
हि सो समवायादो अत्यंतरिदो दु णाणदो णाणी । अण्णाणीति च वयणं एगत्तप्पसाधगं होदि ।। ४९ ।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
न हि सः समवायादार्थंतरितस्तु ज्ञानतो ज्ञानी। अज्ञानीति च वचनमेकत्वप्रसाधकं भवति ।। ४९ ।।
ज्ञानज्ञानिनोः समवायसंबंधनिरासोऽयम्।
न खलुज्ञानादर्थान्तरभूतः पुरुषो ज्ञानसमवायात् ज्ञानी भवतीत्युपपन्नम्। स खलु ज्ञानसमवायात्पूर्वं किं ज्ञानी किमज्ञानी ? यदि ज्ञानी तदा ज्ञानसमवायो निष्फलः । अथाज्ञानी तदा किमज्ञानसमवायात्, किमज्ञानेन सहैकत्वात् ? न तावदज्ञानसमवायात्; अज्ञानिनो ह्यज्ञानसमवायो निष्फलः, ज्ञानित्वं तु ज्ञानसमवायाभावान्नास्त्येव । ततोऽज्ञानीति वचनमज्ञानेन सहैकत्वमवश्यं
[s
गाथा ४९
अन्वयार्थः- [ ज्ञानतः अर्थांतरितः तु] ज्ञानसे अर्थान्तरभूत [सः ] ऐसा वह [-आत्मा ] [समवायात्] समवायसे [ ज्ञानी ] ज्ञानी होता है [ न हि ] ऐसा वास्तवमें नहीं है । [ अज्ञानी ] ‘अज्ञानी' [ इति च वचनम् ] ऐसा वचन [ एकत्वप्रसाधकं भवति ] [ गुण-गुणीके ] एकत्वको सिद्ध करता है।
टीका :- यह, ज्ञान और ज्ञानीको समवायसम्बन्ध होनेका निराकरण [ खण्डन ] है ।
ज्ञानसे अर्थान्तरभूत आत्मा ज्ञानके समवायसे ज्ञानी होता है ऐसा मानना वास्तवमें योग्य नहीं है। [ आत्माको ज्ञानके समवायसे ज्ञानी होना माना जाये तो हम पूछते हैं कि ] वह [ –आत्मा ] ज्ञानका समवाय होनेसे पहले वास्तवमें ज्ञानी है कि अज्ञानी ? यदि ज्ञानी है [ ऐसा कहा जाये ] तो ज्ञानका समवाय निष्फल है। अब यदि अज्ञानी है [ ऐसा कहा जाये ] तो [ पूछते हैं कि ] अज्ञानके समवायसे अज्ञानी है कि अज्ञानके साथ एकत्वसे अज्ञानी है ? प्रथम, अज्ञानके समवायसे अज्ञानी हो नहीं सकता; क्योंकि अज्ञानीको अज्ञानका समवाय निष्फल है और ज्ञानीपना तो ज्ञानके समवायका अभाव होनेसे है ही नहीं। इसलिये 'अज्ञानी' ऐसा वचन अज्ञानके साथ एकत्वको अवश्य सिद्ध करता ही है । और इस प्रकार अज्ञानके साथ एकत्व सिद्ध होनेसे ज्ञानके साथ भी एकत्व अवश्य सिद्ध होता है।
रे! जीव ज्ञानविभिन्न नहि समवायथी ज्ञानी बने; 'अज्ञानी' अवुं वचन ते ओकत्वनी सिद्धि करे । ४९ ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com