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નાટક સમયસારના પદ
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ail. - (हो२) निज निज भाव क्रियासहित, व्यापक व्यापि न कोइ। कर्ता पुदगल करमकौ, जीव कहांसौ होइ ।।१२।।
અજ્ઞાનમાં જીવ કર્મનો કર્તા અને જ્ઞાનમાં અકર્તા છે. (સવૈયા એકત્રીસા) जीव अरु पुदगल करम रहैं, एक खेत,
जदपि तथापि सत्ता न्यारी न्यारी कही है। लक्षन स्वरुप गुन परजै प्रकृति भेद, ।
___ दुहूंमै अनादिहीकी दुविधा है रही है।। एतैपर भिन्नता न भासै जीव करमकी,
जौलौं मिथ्याभाव तौलौं ऑधि बाउ बही है। ग्यानकै उदोत होत ऐसी सूधी द्रिष्टि भई,
जीव कर्म पिंडकौ अकरतार सही है।।१३।।
al. - (होड) एक वस्तु जैसी जु है, तासौं मिलै न आन। जीव अकरता करमको, यह अनुभौ परवान।।१४।।
અજ્ઞાની જીવ - અશુભ ભાવોનો કર્તા હોવાથી ભાવકર્મનો કર્તા છે.
त्यो) । जो दुरमती विकल अग्यानी
नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः परद्रव्यात्मतत्त्वयोः । कर्तृकर्मत्वसम्बन्धाभावे तत्कर्तृता कुतः ||८ ।। एकस्य वस्तुन इहान्यतरेण सार्धं
सम्बन्ध एव सकलोऽपि यतो निषिद्धः । तत्कर्तृकर्मघटनास्ति न वस्तुभेदे
पश्यन्त्वकर्तृ मुनयश्च जनाश्च तत्त्वम् ।।९।।