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કલામૃત ભાગ-૬
सम. वानि. (हो२) - राम-रसिक अर राम-रस, कहन सुननकौं दोई। जब समाधि परगट भई, तब दुबिधा नहि कोइ।।३३।।
शुभ लियासोनु, स्पष्टी.४२४. (Elsa) नंदन बंदन थुति करन, श्रवन चिंतवन जाप। पढ़न पढ़ावन उपदिसन, बहुविधि क्रिया-कलाप।।३४।।
શુદ્ધોપયોગમાં શુભોપયોગનો નિષેધ (દોહરા) सुद्धातम अनुभव जहां, सुभाचार तहां नाहि । करम करम मारग वि, सिव मारग सिवमाहि।।३५।।
वजी. - (यो ) इहि बिधि वस्तु व्यवस्था जैसी।
___ कही जिनंद कही मैं तैसी।। जे प्रमाद संजुत मुनिराजा।
तिनके सुभाचारसौं काजा।।३६।।
जहां प्रमाद दसा नहि व्यापै।
तहां अवलंब आपनौ आपै।। ता कारन प्रमाद उतपाती।
प्रगट मोख मारगको धाती।।३७।।
जे प्रमाद संजुगत गुसांई।
उठहिं गिरहिं गिंदुककी नाई।। जे प्रमाद तजि उद्धत हौंहीं।
तिनकौं मोख निकट द्रिग सौंही।।३८।।