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નાટક સમયસારના પદ
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સમ્યગ્દષ્ટિ જીવોનો સવિચાર (દોહરા) जीन्हके मिथ्यामति नहीं, ग्यान कला घट मांहि । परचै आतमरामसौं, ते अपराधी नांहि ।।३०।।
जिन्हकै धरम ध्यान पावक प्रगट भयौ,
संसै मोह विभ्रम बिरख तीनौं डढ़े हैं। जिन्हकी चितौनि आगे उदै स्वान भूसि भागै,
लागै न करम रज ग्यान गज चढ़े हैं।। जिन्हकी समुझिकी तरंग अंग आगममैं,
आगममैं निपु अध्यातममैं कढ़े हैं। तेई परमारथी पुनीत नर आठौं जाम,
राम रस गाढ़ करें यहै पाठ पढ़े हैं।।३१।।
जिन्हकी चिहुंटि चिमटासी गुन चूनिबेकौं,
कुकथाके सुनिबेकौं दोऊ कान मढ़े हैं। जिन्हको सरल चित्त कोमल वचन बोलै,
सोमदृष्टिलिय डोलैं मोम कैसे गढ़े हैं।। जिन्हकी सकति जगी अलख अराधिबेकौं,
परम समाधि साधिबेकौं मन बढ़े हैं। तेई परमारथी पुनीत नर आठौं जाम,
राम रस गाढ़ करें यहै पाठ पढ़े हैं।।३२।।
। यत्र प्रतिक्रमणमेव विषं प्रणीतम्
तत्राप्रतिक्रमणमेव सुधा कुतः स्यात् । तत्किं प्रमाद्यति जनः प्रपतन्नधोऽधः
किं नोर्श्वभूर्ध्वमधिरोहति निष्प्रमादः ।।१०।।