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है, जो महत्वपूर्ण है।
जब जीव को अपराध का बोध हो जाता है और जीव अपराध छोड़ने को तैयार हो जाता है, तब अपराध छोड़ने का उपाय निज शुद्धात्मा का ध्यान ही है, इसका आचार्य ज्ञान कराना चाहते हैं। अतः प्रत्येक जीव स्वभाव से अनादि-अनंत-मोहादि भावों से रहित ही है, यह समझाना चाहते हैं । उस समय मोहादि भाव किसके हैं? ऐसा प्रश्न उपस्थित होना स्वाभाविक है। इसके उत्तर में ये मोहादि विभाव भाव जीव के नहीं है, कर्म निमित्तक औपाधिक भाव हैं, इस अपेक्षा को मुख्य करके कारण में कार्य का उपचार करके पुद्गल के कहे जाते हैं ।
योगसार प्राभृत
आत्मा का स्वभाव ही अनादि से शुद्ध है। आजतक जो जीव शुद्ध / मुक्त हो गये हैं, वे सर्व जीव निजशुद्धात्मा के ध्यान से ही सिद्ध हुए हैं । इस विषय का ज्ञान कराना ही अध्यात्म शास्त्रों का मूल प्रयोजन है । अतः इस अध्यात्म-शास्त्र में मोहादि भावों को कर्मजन्य कहा है।
जीव, जीवरूप ही रहता है
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अनादावपि सम्बन्धे जीवस्य सह कर्मणा ।
न जीवो याति कर्मत्वं जीवत्वं कर्म वा स्फुटम् ।। १०६ ।।
अन्वय :- कर्मणा सह जीवस्य अनादौ सम्बन्धे अपि न जीवः कर्मत्वं याति न वा कर्म जीवत्वं (याति एतत् ) स्फुटम् (अस्ति) ।
सरलार्थ :- कर्म के साथ जीव का अनादिकालीन सम्बन्ध होनेपर भी न तो कभी जीव कर्मपने प्राप्त होता है कर्म भी कभी जीवपने को प्राप्त होता है अर्थात् जीव कभी कर्मरूप परिणमित नहीं होता और कर्म भी कभी जीवरूप परिणमित नहीं होता है; यह स्पष्ट ही है ।
भावार्थ :- संसारी जीव और ज्ञानावरणादि आठ कर्म - दोनों अनादिकाल से साथ-साथ रह रहे हैं; तथापि दोनों कभी अपना स्वरूप छोड़कर अन्य द्रव्यरूप नहीं हुए हैं। इस अनादिकालीन परमसत्य को आचार्य यहाँ बता रहे हैं।
इस विश्व में जीव अनंत, पुद्गल अनंतानंत, धर्म-अधर्म-आकाश द्रव्य मात्र एक-एक और कालद्रव्य असंख्यात हैं । वे सर्व द्रव्य आपस में घुल-मिलकर अनादिकाल से रहते आये हैं; लेकिन उनका परस्पर में परिवर्तन कभी हुआ ही नहीं, भविष्य में होगा भी नहीं और वर्तमानकाल में भी नहीं हो रहा है । इस परम सत्य का ज्ञान आचार्य ने इस श्लोक में कराया है।
प्रश्न :- श्लोक में मात्र जीव और कर्म ही आपस में बदलते नहीं, यह विषय बताया है; आप सर्व द्रव्यों पर क्यों घटित कर हैं ?
उत्तर :जीव और कर्म का अनादिकाल से परस्पर निमित्त - नैमित्तिक संबंध होने पर भी वे परस्पर में बदलते नहीं; यह विषय तो मात्र उपलक्षणरूप में बता दिया है। एक द्रव्य अन्य द्रव्यरूप नहीं होता, यह विषय तो अनंत जिनेंद्र भगवन्तों ने अनादिकाल से अनंत बार बताया है और भविष्य भी अनंत जिनेंद्र नियम से बतायेंगे ही। प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने लक्षण से स्वयं स्वत: सिद्ध और
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