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अजीव-अधिकार
अजीव द्रव्यों के नाम -
धर्माधर्म-नभ:-काल-पुद्गला: परिकीर्तिताः।
अजीवा जीवतत्त्वज्ञैर्जीवलक्षणवर्जिताः ।।६०॥ अन्वय :- जीवतत्त्वज्ञैः धर्म-अधर्म-नभ:-काल-पुद्गलाः जीवलक्षणवर्जिताः अजीवाः परिकीर्तिताः।
सरलार्थ :- जीवतत्त्व के ज्ञाता अर्थात् आत्मज्ञ अरहंत, आचार्य आदि साधक जीवों ने धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल - इन पाँच द्रव्यों को जीवद्रव्य के लक्षण से रहित होने के कारण अजीव द्रव्य कहा है।
भावार्थ :- जीव द्रव्य का लक्षण उपयोग अर्थात जानना-देखना है - यह जीवाधिकार में बताया है। अब इस अजीवाधिकार में अजीवतत्त्व का वर्णन करते हए प्रारंभ में ही पाँचों अजीवद्रव्यों के नाम बताये हैं । जीव द्रव्य का चेतना लक्षण जिनमें नहीं है, उनको समूहरूप से अजीव कहते हैं। ये पाँचों द्रव्य अपने-अपने भिन्न-भिन्न लक्षणों के कारण भिन्न-भिन्न ही द्रव्य हैं। प्रत्येक का लक्षण आगे यथास्थान ग्रंथकार स्वयमेव बतानेवाले हैं। अजीव द्रव्यों की स्वतंत्रता -
अवकाशं प्रयच्छन्तः प्रविशन्तः परस्परम् ।
मिलन्तश्च न मुञ्चन्ति स्व-स्वभावं कदाचन ।।६१।। अन्वय :- (ते अजीवाः) परस्परं अवकाशं प्रयच्छन्तः, प्रविशन्तः, च मिलन्तः स्वस्वभावं कदाचन न मुञ्चन्ति।
सरलार्थ :- धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल - ये पाँचों अजीव द्रव्य एक-दूसरे को जगह/अवगाह देते हुए और एक-दूसरे में प्रवेश करते हुए, तथा एक दूसरे में मिलते हुए भी अपनेअपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ते।
भावार्थ :- यहाँ प्रकरण अजीव का होने से केवल अजीव द्रव्यों की चर्चा की है, लेकिन वस्तुतः छहों द्रव्य परस्पर में प्रवेश करते हैं, मिलते हैं; लेकिन अपना-अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ते । इसीप्रकार का भाव पंचास्तिकायसंग्रह गाथा-७ में भी आया है।
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