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योगसार-प्राभृत
योगसार-प्राभूत
(ग्रंथ-परिचय)
प्रस्तुत ग्रंथ का योगसार-प्राभृत यह एक सार्थक नाम है । ग्रंथकार श्री अमितगति आचार्य ने ५४० श्लोक में इस ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की है। संस्कृत भाषा का प्रयोग अतिशय सुगम रीति से किया है। संस्कृत भाषा का सामान्य जानकार भी श्लोकगत विषय को सहजरूप से समझ सकता है । इस ग्रंथ में मात्र अनुष्टुप-छंद का प्रयोग ही मुख्यता से किया है; अतः ५२४ पद्य तो मात्र अनुष्टुप छंद में हैं और शेष केवल १६ ही पद्य अन्य-अन्य छंद में लिखे गये हैं। उनका उल्लेख यथायोग्य स्थान पर किया है।
योगसार-प्राभृत का प्रतिपाद्य विषय अध्यात्म है । यह ग्रंथ जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, चारित्र एवं चूलिका नाम से नौ अधिकार में विभक्त हैं। अधिकार के अनुसार पद्यों की संख्या - १.५९, २.५०, ३.४०, ४.४१, ५.६२, ६.५०, ७.५४, ८.१००, ९.८४।
गात का काल विक्रम सवत ११वीं सदी का प्रारम्भकाल, अथवा १०वीं सदी का मध्यकाल हो सकता है, ऐसा इतिहासज्ञों का अभिप्राय हैं। आचार्य अमितगति नामक दो आचार्य हुए हैं, उनमें योगसार-प्राभृत के कर्ता प्रथम अमितगति हैं।
प्रथम आचार्य अमितगति की तीन कृतियाँ हैं, ऐसा अनुमान किया जाता है। तीनों में एक तो यह योगसार-प्राभृत, दूसरा द्वात्रिंशतिका और तीसरा है तत्त्वभावना।
अब हम योगसार-प्राभृत नामक इस कृति की अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इसके पहले ही यह तो स्पष्ट लिख दिया है कि इस ग्रंथ का नाम सार्थक है। अतः नाम से ही व्यक्त होनेवाले अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं।
आचार्यकत उपलब्ध साहित्य में अनेक ग्रंथों के नाम के साथ मात्र सार यह शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे - प्रवचनसार, गोमट्टसार, लब्धिसार, क्षपणासार, तत्त्वार्थसार, योगसार, तत्त्वसार आदि। अनेक ग्रंथों के नाम के साथ मात्र प्राभृत (पाहुड़) शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे - समयप्राभृत, पंचास्तिकाय प्राभृत, दोहा पाहुड़, दर्शन प्राभृत, सूत्र प्राभृत, मोक्ष प्राभृत आदि। आचार्य अमितगतिकृत इस शास्त्र के नाम के साथ सार और प्राभृत दोनों शब्द जुडे हुए हैं। अभी इसके समान किसी भी अन्य ग्रंथ के नाम के साथ सार और प्राभृत जुड़ा हुआ पढ़ने, जानने में नहीं आया।
इस शास्त्र के नाम में तीन शब्द एकत्र हुए हैं। पहला शब्द योग, दूसरा शब्द सार एवं तीसरा शब्द प्राभृत है। ये तीनों शब्द - योग+सार+प्राभृत = मिलकर योगसार-प्राभृत इस ग्रंथ का नाम तैयार हुआ है, जो हमारे सामने हैं।
अब हम तीनों शब्दों का क्रम से अर्थ देखते हैं। योग शब्द के अनेक अर्थ साहित्य के अन्य
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