________________
१५०
योगसार-प्राभृत
आये हैं; क्योंकि यह विषय सर्वज्ञ प्रणीत वस्तु-व्यवस्था का प्राण है। जो इस अटल सिद्धान्त को मान्य नहीं करता, वह सर्वज्ञ भगवान के आगम को/उपदेश को नहीं मानता है। संकल्प बिना द्रव्य, गुण, पर्याय इष्टानिष्ट नहीं -
न द्रव्यगुणपर्यायाः संप्राप्ता बुद्धिगोचरम् ।
इष्टानिष्टाय जायन्ते संकल्पेन विना कृताः ।।२१९।। अन्वय :- बुद्धिगोचरं सम्प्राप्ताः द्रव्य-गुण-पर्यायाः संकल्पेन विना कृताः इष्ट-अनिष्टाय न जायन्ते।
सरलार्थ :- संकल्प अर्थात् भ्रान्त कल्पना के बिना विश्वस्थित बुद्धिगोचर संपूर्ण द्रव्य, गुण, पर्यायों में से कोई भी द्रव्य, गुण अथवा पर्याय इष्ट/सुखदायक या अनिष्ट/दुःखदायक नहीं होते अर्थात् नहीं लगते।
भावार्थ :- संकल्प का अर्थ यहाँ मिथ्यात्व परिणाम लेना चाहिए; क्योंकि अज्ञानी जीव मिथ्यात्व से ही इष्टानिष्ट कल्पना करता है। जो पदार्थ अपने ज्ञान का ज्ञेय बनते हैं; उन्हें यहाँ बुद्धिगोचर में लिया है। ___ इस षद्रव्यमयी विश्व में चेतन-अचेतन, रूपी-अरूपी, क्रियाशील-निष्क्रिय पदार्थों का जैसा विभाजन जानने में आता है; पदार्थों का वैसा इष्ट-अनिष्टरूप विभाजन न तो सर्वज्ञ भगवान ने बताया है और न ज्ञानियों के ज्ञान में प्रत्यक्ष अनुभव में आ रहा है । अज्ञानी अपनी मिथ्याबुद्धि से ही पदार्थों को इष्ट-अनिष्ट मानता है।
जैसे वर्षा कृषकादि को इष्ट लगती है और वही वर्षा उसी समय कुंभकारादि को अनिष्ट लगती है। वर्षा न तो इष्ट है न अनिष्ट है। उसे इष्ट या अनिष्ट मानना - यह तो अज्ञानी का मोहरूप परिणाम
है।
वचनों से जीव का सम्बन्ध नहीं -
न निन्दा-स्तुति-वाक्यानि श्रूयमाणानि कुर्वते।
संबन्धाभावत: किंचिद् रुष्यते तुष्यते वृथा ।।२२०।। अन्वय :- श्रूयमाणानि निन्दा-स्तुति-वाक्यानि सम्बन्ध-अभावतः (चेतनस्य) किंचित् न कुर्वते (मूढः तेषु) वृथा रुष्यते तुष्यते।
सरलार्थ :- सुनने को मिले हुए निन्दा अथवा स्तुतिरूप वचन जीव का कुछ भी अच्छा-बुरा नहीं करते; क्योंकि वचनों का जीव के साथ सम्बन्ध नहीं है। अज्ञानी जीव निन्दा अथवा स्तुतिरूप वचनों को सुनकर व्यर्थ ही राग-द्वेष करते हैं।
भावार्थ :- तात्त्विक दृष्टि से विचार किया जाय तो शब्द अर्थात् वचन, भाषावर्गणा नामक पुद्गल द्रव्य की पर्याय है। इसलिए वचनों का जीव के साथ सम्बन्ध नहीं है। यह जानकर ज्ञानी जीव वचनों के कारण राग-द्वेष नहीं करते, यह मूल तत्त्व इस श्लोक में ग्रंथकार ने बता दिया है।
[C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/150]