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बन्ध अधिकार
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दुःख के दाता हैं।
भावार्थ :- यहाँ प्रशस्त और अप्रशस्त-परिणामों के अलग-अलग नामों का उल्लेख है। प्रशस्त परिणामों को 'पुण्य' और अप्रशस्त परिणाम (भाव) को 'पाप' बतलाया है; क्योंकि ये दोनों क्रमशः पुण्य व पाप कर्मबन्ध के कारण हैं। इन दोनों को पौद्गलिक, मूर्तिक तथा यथाक्रम सुख-दुःख के प्रदाता लिखा है। सुख-दुःख के प्रदाता वे पुण्य-पापरूप द्रव्यकर्म होते हैं, जो उक्त परिणामों के निमित्त से उत्पन्न होकर स्थितिबन्ध के द्वारा फलदान के समय तक जीव के साथ सत्ता में रहते हैं। जब वे उदय में आकर जीव से अलग होने लगते हैं, तब जीव के सुख-दुःख में निमित्त बनते हैं। पुण्यकर्म के सुखदाता मात्र इंद्रिय-सुख की अपेक्षा कहा है, उसे निराकुल सुखदाता मानना अज्ञानभाव है।
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ६ के सूत्र तीन में यह विषय आया है - शुभः पुण्यस्याशुभ: पापस्या।
समयसार की गाथा ७४ में आस्रव (बंध) परिणाम को दुक्खा दुक्खफलत्ति य/दुःखरूप तथा दुःखरूपफल देनेवाले कहा है।
प्रश्न :- क्या पुण्य परिणाम को भी पौद्गलिक समझना?
उत्तर :- हाँ, इसमें आश्चर्य की क्या बात है? समयसार गाथा १५६ की टीका में और कलश १०७ में पुण्य को अन्यस्वभावी अर्थात् पुद्गलस्वभावी कहा है।
पुण्य परिणाम, पुद्गलमय पुण्य कर्म में निमित्त होते हैं, इस दृष्टि से कारण में कार्य का उपचार करके भी पुण्यभाव को पौद्गलिक कहने/मानने में आया है।
पुण्य-पाप पुद्गलमय होने से मूर्तिक तो सहज ही हो गये। जो वीतरागधर्मरूप नहीं है, उसे पुद्गल कहने की अध्यात्म-शास्त्र की पद्धति है। पुण्य को पुद्गल कहते ही पुण्य परिणाम में स्पर्शादि गुणों को ढूंढने का अज्ञान अनुचित है। पुण्य-पाप का फल भोगनेवाला जीव मूर्तिक -
मूर्तो भवति भञ्जानः सख-दःखफलं तयोः।
मूर्तकर्मफलं मूर्तं नामूर्तेन हि भुज्यते ।।१८३।। अन्वय :- तयोः (पुण्य-पाप-परिणामयोः) सुख-दुःख-फलं भुञ्जान: (जीव:) मूर्तः भवति; (यतः) मूर्त-कर्म-फलं मूर्तं अमूर्तेन न हि भुज्यते।
सरलार्थ :- उन दोनों पुण्य-पापरूप परिणामों के सुख-दुःखरूप फल को भोगता हुआ यह जीव मूर्तिक होता है; क्योंकि मूर्तिक कर्म का फल मूर्तिक होता है और वह अमूर्तिक द्वारा नहीं भोगा जाता।
भावार्थ :- पुण्य तथा पाप दोनों द्रव्यकर्म पौद्गलिक/मूर्तिक हैं, क्योंकि वे कार्माणवर्गणारूप पुद्गल से बनते हैं। उनके दिये हुए सुख-दुःख फल को, जो कि मूर्तिकजन्य होने से मूर्तिक होते हैं, उन्हें अमूर्तिक आत्मा कैसे भोगता है? यह एक प्रश्न है, जिसका उत्तर इतना ही है कि पुण्य-पाप
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