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ये तो सोचा ही नहीं के बराबर हिंसा, झूठ आदि पापाचरण तो फिर भी होगा ही; परन्तु यदि कोई बुद्धिपूर्वक पापाचरण करे तब तो वह पापी ही नहीं महापापी है।
ध्यान रहे, सब अपनी-अपनी ही समीक्षा व समालोचना करें, दूसरों की टीका टिप्पणी टोकों, दूसरों का सन्मार्ग दर्शन करने के लिए तो पुराण ही पर्याप्त हैं।
चौर्यानन्दी रौद्रध्यान की सीमा में न केवल डाकू और चोर ही आते हैं, बल्कि वे सभी व्यापारी भी आते हैं जो अधिक पैसा कमाने के प्रलोभन में सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात की तस्करी कर तथा कर-चोरी करके उसकी सफलता पर प्रसन्न होते हैं।
इसके सिवाय विषय सामग्री का संकलन करके, चेतन (नौकरचाकर)- अचेतन (भोग सामग्री) परिग्रह का संग्रह करके, आवश्यकता से अधिक भोगोपभोग सामग्री का संग्रह करके; उसके दर्शन और प्रदर्शन में उत्साहित होना विषयानन्दी या परिग्रहानन्दी रौद्रध्यान है।
बहुत सा पाप पाप सा ही नहीं लगता किया करते, किसी को बुरी आदतों के लिए कोसते रहे । चाहे जिसको अपनी चर्चा का विषय बनाकर उसकी बुराई-भलाई किया करते और ऐसा करके खुश होते रहते। अभी तक हमने ये सोचा नहीं कि इनसे भी पापबंध होता है। अन्यथा हम ऐसा क्यों करते ? अब हम संकल्प करते हैं कि एक-एक बात सोच-समझकर किया करेंगे, ताकि कम से कम व्यर्थ के पाप से तो बचे रहें।" __ समूह में खड़े सभी लोग उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे और सिर हिलाकर स्वीकार कर रहे थे कि तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो।"
इसतरह ज्ञानेश की धर्मामृत वर्षा से भीगे सभी श्रोताओं ने इन पाप भावों से बचे रहने का मन में दृढ़ संकल्प कर लिया। __हृदयतंत्री को झंकृत कर देनेवाले पापभावरूप आर्तध्यान एवं रौद्रध्यान पर हुए ज्ञानेश के प्रवचनों ने श्रोताओं पर तो अमिट छाप छोड़ी ही, मेरे और मुझ जैसे अनेक नास्तिकों के हृदयों को भी हिला दिया है। अनेकों व्यक्तियों ने अहिंसा का मार्ग अपना लिया है, व्यापार में अन्याय-अनीति और शोषण की प्रवृत्ति से और हिंसाजनक खानपान एवं अभक्ष्य-भक्षण से मुख मोड़ लिया है।
ज्ञानेश के निमित्त से इतना बड़ा परिवर्तन ! निश्चय ही यह एक चमत्कारिक काम है। इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।
धनेश मन ही मन सोचता है - "यह सब यों ही अंधभक्ति से नहीं हो रहा है । ज्ञानेश धर्म का मर्म खोलने और धर्म संबंधी मिथ्या मान्यता के भ्रम को मेटने में माहिर भी है। यद्यपि मेरी बुद्धि में अभी तक उसकी ये आध्यात्मिक बातें पूरी तरह बैठ नहीं पाईं, पर यह मेरी ही कमजोरी है, जिसे मुझे स्वयं दूर करना होगा।
अज्ञान अन्धकार में पड़े सभी श्रोताओं के लिए ज्ञानेश सम्यग्ज्ञान सूर्य साबित हो रहा था। आज उसने जो-जो आर्त-रौद्र ध्यान पर प्रकाश डाला था; उस प्रकाशपुंज से श्रोताओं के हृदय कमल की कली-कली खिल उठी थी। सभी श्रोता प्रवचन की विषयवस्तु पर विचार करने के लिए विवश थे।
घरों की ओर जाते हुए रास्ते में जहाँ देखो वहीं झुण्डों में खड़े लोग प्रवचन में चर्चित विषय की ही चर्चा करते दिखाई दे रहे थे। ___ अपने समूह में खड़ा एक कह रहा था - "देखो ! हम अपना मनोविनोद करने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपने वचन बाण का लक्ष्य बनाकर उसकी मजाक उड़ाया करते हैं, किसी की टीका-टिप्पणी