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बहुत सा पाप पाप सा ही नहीं लगता
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ये तो सोचा ही नहीं अपना भला-बुरा अभिप्राय एवं सही-गलत मान्यतायें ही हैं। इसीलिए कहा है कि - दूसरे के द्रव्य को छीन लेने या हड़प जाने का अभिप्राय, झूठ बोलने का अभिप्राय, दूसरों को मारने-पीटने व जान से मार डालने का अभिप्राय और यह सब करके खुश होना रौद्रध्यान ही है तथा छोटेबड़े जीवों की विराधना में अनैतिक साधनों द्वारा परिग्रह के संग्रह में आनन्द मानना रौद्रध्यान है।
स्वयं या दूसरों के द्वारा किसी को पीड़ित किए जाने पर हर्षित होना एवं बदला लेने की भावना आदि भी रौद्रध्यान है।"
रौद्रध्यान की बाह्य पहचान बताते हुए ज्ञानेश ने कहा - ___ "क्रूर होना, मनोरंजन हेतु शिकार आदि के लिए हथियार रखना, हथियार चलाने की कला में निपुण होना, हिंसा की कथा सुनने में रुचि लेना, टेढ़ीभौंह, विकृतमुखाकृति, क्रोधादि में पसीना आने लगना, शरीर काँपना आदि तथा मर्मभेदी कठोर वचन बोलना, तिरस्कार करना, बाँधना, धमकाना-डराना, ताड़न करना, परस्त्री पर खोटी भावना से मर्यादा का उल्लंघन करना आदि रौद्रध्यान की बाह्य पहचान है। जो मुँह में तिनका रखने वाले भोले-भाले, दीन-हीन खरगोश एवं हिरणों जैसे मूक पशुओं को अपने हथियार का निशाना बनाकर प्रसन्न होते हैं; भालुओं, बन्दरों, सर्पो तथा तोतों, चिड़ियों आदि को बन्धन में डालकर अपना व दूसरों का मनोरंजन करते हुए उनसे आजीविका साधने की सोचते हैं; वे सब रौद्रध्यानी व्यक्ति हैं।"
और भी सुनो - "जिन लोगों को पशु-पक्षियों में मुर्गे, तीतर, भैंसे, बकरे, मेंढे, सांड और मनुष्यों को लड़ाने-भिड़ाने तथा लड़ते हुए प्राणियों को देखने, उन्हें लड़ने के लिए, प्रोत्साहित करने में आनन्द आता है, भले ही वह व्यापारिक दृष्टि से किया जाये अथवा मनोरंजन के लिए किया जाये; वह सब रौद्र ध्यान ही है। इनका फल नरक है।
यदि ये सब पाप नहीं होते तो साधु-संत इन सबका त्याग कर आत्मापरमात्मा का ध्यान क्यों करते ?"
इतना समझाने के बाद टेस्ट लेने हेतु ज्ञानेश ने धनेश से पूछा - "बताओ ? मार-काट, लड़ाई-भिड़ाई और अश्लील साहित्य पढ़ने में रुचि लेना तथा जासूसी उपन्यास पढ़ना कौन-सा ध्यान है?”
धनेश ने उत्तर दिया - “यह सब रौद्रध्यान ही है; क्योंकि रौद्रध्यानियों को ही तो इसप्रकार के कार्यों में आनन्द आता है।"
ज्ञानेश ने पूछा - "बताओ धनेश! तुम प्रतिदिन प्रात: जो न्यूज पेपर पढ़कर चुनावों की हार-जीत पर रुष्ट-तुष्ट होते हो, हर्ष-विषाद करते हो, वह कौन-सा ध्यान है?"
धनेश ने कहा - "हर्ष में रौद्र व विषाद में आर्तध्यान होता है।"
धनेश के उत्तर पर संतोष प्रगट करते हुए ज्ञानेश ने आगे कहा - "जैसी करनी वैसी भरनी की उक्ति के अनुसार ऐसे हिंसानंदी रौद्रध्यानियों को इन परिणमों के फल में नियम से नरकगति मिलती है। जहाँ वे लम्बे काल तक लड़ते-भिड़ते रहेंगे तथा अन्य नारकी इनके देह के तिल के बराबर छोटे-छोटे टुकड़े करेंगे, जिससे इन्हें मरणान्तक पीड़ा तो होगी, पर मरेंगे नहीं।
जो आजीविका के लिए हिंसोत्पादक व्यवसाय, उद्योग-धंधे करके अधिक धन अर्जित कर प्रसन्न होते हैं, वे भी हिंसानन्दी रौद्रध्यानी ही हैं। मद्य-मांस-मधु, नशीली वस्तुओं का व्यापार आदि ऐसी अनेक चीजें हैं, जिनमें अनन्त जीव राशि की हिंसा अनिवार्य है। अधिक कमाई के प्रलोभन में पड़कर ऐसे निकृष्ट धंधों को करके खुश होना हिंसानंदी रौद्रध्यान है , जिसका फल नरक है। अतः हमें वही
आजीविका चुननी है जिसके साधनों में शुद्धि हो, अधिक हिंसा न हो। शत-प्रतिशत हिंसा का बचाव करने पर भी उद्योगों में आटे में नमक