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________________ क्या / कहाँ ? १. प्रेम सम्बन्ध हों, पर ऐसे २. अपने-अपने भाग्य का खेल ३. सच्ची प्रीति पैसे की मुँहताज नहीं होती ४. अच्छे अवसर द्वार खटखटाते आते हैं। ५. तथ्य एवं सत्य को समस्या मत बनने दो ६. जो जस करै सो तस फल चाखा ७. खोटे भावों का फल क्या होगा? ८. पैसा बहुत कुछ है, पर सब कुछ नहीं ९. सही साध्य हेतु सही साधन आवश्यक १०. विचित्र संयोग पुण्य-पाप का ११. पति के स्थान की पूर्ति संभव नहीं १२. अब पछताये क्या होत है, जब १३. पाप से घृणा करो, पापी से नहीं १४. किसने देखे नरक १५. हार में भी जीत छिपी होती है १६. भूत की भूलों को भूल जाओ १७. सफल व्यापारी कौन ? १८. आर्तध्यान के विविध रूप १९. बहुत सा पाप पाप सा नहीं लगता २०. ये तो सोचा ही नहीं २१. करनी का फल तो भोगना ही होगा २२. सच्चा मित्र वह जो दुःख में साथ दे २३. ज्ञानेश तो बस ज्ञानेश ही है २४. सफलता का रहस्य ०९ १४ २२ २९ ३८ ४८ ५३ ५८ ६३ ६८ ७८ ८८ ९२ ९८ १०८ ११५ १२१ १२४ १२८ १३९ १४४ १५३ १५८ १६४ एक प्रेम संबंध हों, पर ऐसे बी. ए. अन्तिम वर्ष में आते-आते ज्ञानेश के सभी साथी उसके अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व से भली-भाँति परिचित हो चुके थे। बहुत से साथी उसकी सरलता, सज्जनता, निःस्वार्थ सेवा की भावना, परोपकार की प्रवृत्ति और सभी दुर्व्यसनों से सदा दूर रहने के कारण उससे प्रभावित भी थे । उद्दण्ड और ऊधमी छात्र भी उसका आदर करते थे। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह कॉलेज का सर्वमान्य निर्विरोध नेता भी बन गया था; पर उसने अपने सहज स्वभाव से किसी को कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि - " मैं अन्य छात्रों से कुछ विशेष हूँ ।" हर बात को, हर वस्तु को और हर घटना को देखने के दो पहलू हो सकते हैं, जहाँ फूल हैं वहीं कांटे भी हैं, जो फूलों के पक्ष को देखते हैं, वे खुश रहते हैं और जो कांटों-कांटों को ही देखते हैं, वे दिन-रात रोते ही रहते हैं । इतनी समझ तो अनपढ़ कुम्हार जैसे लोगों में भी होती है कि उन्हें गधे जैसे मन्दबुद्धि पशु में भी उसकी मन्दबुद्धि की कमी नहीं दिखती; बल्कि उसकी ईमानदारी, सीधापन, परिश्रमशीलता और शुद्ध शाकाहारी होने के गुण ही दिखाई देते हैं। तभी तो वे उसका प्रेमपूर्वक पालनपोषण और उपयोग करते हैं। काश ! हम भी गधे के जीवन से उपर्युक्त गुण ग्रहण कर लें तो इस दुनिया का नक्शा ही बदल सकता है। यद्यपि ज्ञानेश अभी २२ - २३ वर्ष का ही होगा; परन्तु वह अपने आत्मविश्वास, गंभीरता, उदारता, निशंकता और निर्भयता आदि
SR No.008390
Book TitleYe to Socha hi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size317 KB
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