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________________ ये तो सोचा ही नहीं द्वारा देखने का दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हो सकता है, यह उन व्यक्तियों के सोच पर निर्भर करता है कि वे उसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं। एक साधु परशुराम और राम नाम के शिष्यों के साथ वन की ओर जा रहा था। रास्ते में आम का पेड़ था। एक पथिक ने पत्थर फेंककर एक ही चोट में आम का फल नीचे गिरा दिया और साधु को आता देख भाग गया। ** - फल को हाथ में लेकर साधु ने राम से पूछा नीचे गिरे फल से तुमने क्या शिक्षा ग्रहण की ? राम ने उत्तर दिया गुरुदेव ! उस पथिक ने वृक्ष पर पत्थर फेंक कर वृक्ष को घायल कर दिया, फिर भी इस वृक्ष ने उसके बदले में यह मीठा फल दिया । कितना परोपकारी और महान है यह वृक्ष ! चोट खाकर भी फल देता है। - इस आम्र वृक्ष से यही प्रश्न साधु ने परशुराम से किया। परशुराम ने कहा- गुरुजी ! 'लातों के देव बातों से नहीं मानते पत्थर से चोट खाये बिना यह आम का वृक्ष भी फल देनेवाला नहीं था। आप इसे कितना भी उपेदश देकर देख लो, फिर भी यह पत्थर की चोट खाये बिना फल नहीं देगा। इसप्रकार एक ही घटना से सज्जन और दुर्जन अपने-अपने सोच के अनुसार अलग-अलग शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस उदाहरण में राम कृतज्ञ है और परशुराम कृतघ्न हैं। परशुराम जैसे सोच वाले व्यक्ति कभी मानसिक सुख-शान्ति नहीं पा सकते; क्योंकि उसका व्यवहार नकारात्मक है, गलत है। चन्द्रगुप्त और चाणक्य रास्तें में जा रहे थे। ज्यों ही वे तालाब के तट पर पहुँचे कि चाणक्य को घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दी, मुड़कर पीछे देखा तो धूल उड़ती दिखाई दी। चाणक्य को समझने में 24 तथ्य एवं सत्य को समस्या मत बनने दो देर नहीं लगी; उसने चन्द्रगुप्त से कहा- “तुम शीघ्र ही तालाब में डुबकी लगाकर कर छिप जाओ। चन्द्रगुप्त कुछ सोचने लगा, क्या ? क्यों ? करने लगा; पर उसके क्या ? क्यों ? का उत्तर देने का समय नहीं था, अत: चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को धक्का देकर पानी में गिरा दिया। बस, इतनी ही देर में चार घुड़सवार सैनिक सामने आकर रुके और बूढ़े बाबा से पूछा ! क्यों बाबा ! आपको यहाँ चाणक्य और चन्द्रगुप्त जाते दिखे।" बाबा ने कहा "चाणक्य को तो मैं नहीं जानता, मैंने उसे कभी देखा भी नहीं; पर आपको देखकर राजकुमार के वेश में एक लड़का इस तालाब में अभी-अभी छिप गया है।" वे चारों सैनिक उतावलेपन में वैसे ही कपड़े पहने हथियारों सहित पानी में जाने लगे तो बाबा ने कहा 'अरे! भाई, कपड़े तो खोल दो, हथियार भी रख दो और तसल्ली से लड़के को खोज कर पकड़ लाओ, तुम्हारे सामान की रखवाली करने को मैं खड़ा हूँ, चिन्ता क्यों करते हो ?" सैनिकों ने सोचा - "बाबा ठीक कहता है, कपड़े गीले क्यों करें, हथियार भी खराब हो जायेंगे ।" कपड़े एवं हथियार किनारे पर रख कर ज्यों ही सैनिकों ने पानी में प्रवेश किया, त्यों ही बूढ़े बाबा चाणक्य ने उन्हीं के हथियारों से चारों को मार गिराया और चन्द्रगुप्त को पानी से बाहर निकाल कर पूछा"जब मैंने धक्का देकर तुम्हें पानी में गिराया तब तुमने मेरे बारे में क्या सोचा ? और जब मैंने सैनिकों को यह बताया कि एक बालक राजकुमार की पोषाक पहने तुम्हें देखकर पानी में छिप गया है, तब तुम मेरे बारे में क्या सोच रहे थे ?" - ४५ - चन्द्रगुप्त का एक ही उत्तर था - "मैं सोच रहा था कि गुरुजी जो कुछ / जैसा भी व्यवहार मेरे साथ कर रहे हैं और मेरे बारे में कह रहे हैं,
SR No.008390
Book TitleYe to Socha hi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size317 KB
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