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तथ्य एवं सत्य को समस्या मत बनने दो
ये तो सोचा ही नहीं उसमें कहीं न कहीं मेरा ही हित छिपा होगा। पितृतुल्य मेरे गुरुजी मेरे साथ धोखा-धड़ी कर ही नहीं सकते।"
इस कहानी से हमें दो बातें सीखने को मिली हैं, एक तो चन्द्रगुप्त की तरह हम भी सकारात्मक सोचें और दूसरे अपने गुरुओं के प्रति ऐसी श्रद्धा हो - तभी हम उनसे सन्मार्ग की शिक्षा ग्रहण कर सुख-शान्ति से रह सकेंगे। ___ गुलाब के पेड़ में फूल भी होते हैं, काँटें भी होते हैं, सज्जन फूल को ही देखते हैं और दुर्जन काँटे को, जिन्हें फूल दिखते हैं उनकी बगिया सुगन्धित वातावरण से महकती है, जिन्हें काँटे दिखते हैं, वे उन्हें उखाड़कर फैंक देते हैं। वे धतूरा बोते हैं, जिसमें फूल ही फूल होते हैं, काँटें नहीं; पर उन फूलों में सुगंध नहीं, बल्कि जहर होता है।
तीसरी बात - कभी किसी काम को सशर्त मत करो, किसी की आलोचना मत करो और किसी से कोई शिकायत मत करो।
किसी से यह मत कहो कि आपने हमारा काम नहीं किया, बुरे दिनों में सहयोग नहीं किया। लौकिक दृष्टि से सुखी रहने के लिए भी इन्हें महामंत्र की तरह याद रखो ! क्योंकि निन्दा, आलोचना और शिकायत करने से अपना मन ही आन्दोलित होता है, उत्तेजित होता, जिससे हमें पाप का बन्ध तो होता ही है, हम जिससे किसी की निन्दा, आलोचना करते हैं, शिकायत करते हैं, सुननेवाला उसके बारे में नहीं; बल्कि हमारे बारे में ही गलत धारणा बनाता है। वह सोचता है कि इस व्यक्ति को दूसरों की निन्दा, टीका-टिप्पणी करने के सिवाय और शिकायतें करने के सिवाय अन्य कुछ काम ही नहीं है। कभी किसी की तो कभी किसी की निन्दा एवं आलोचना ही करता रहता है।'
चौथी बात - यदि हम सचमुच सुख-शान्ति से रहना चाहते हैं तो तथ्यों को तथ्य के रूप में ही देखें और उसका समाधान खोजें । तथ्यों
को समस्या न बनाये । समस्या बनते ही मूल तथ्य तो गायब ही हो जाता है और हम समस्या के जाल में बुरी तरह उलझ जाते हैं। उदाहरणार्थ - कल्पना करो - दो-ढाई वर्ष का बालक घुटनों के बल चलतेचलते बालकनी (छज्जे) पर आकर नीचे गिर गया।
अब मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, जानना चाहता हूँ कि बालक के गिरने की आकस्मिक दुर्घटना एक तथ्य है, आँखों देखा सत्य है या समस्या है?
आपका उत्तर होगा - नि:सन्देह दुर्घटना एक तथ्य है, आँखों देखा सत्य है, यह कोई समस्या नहीं है। जो घट गया वह सत्य है बाकी सब कहानी है। ऐसी स्थिति में अगला कदम होगा - तत्काल हॉस्पिटल ले जाकर इमरजेन्सी में उपचार कराना होगा।
इसके विपरीत इस घटित घटना को तथ्य को यदि किसी के द्वारा उत्पन्न की हुई समस्या समझ लिया गया तो उसके कारणों की खोज में उलझ जायेगा। आधे-अधूरे संभावित कारणों का पता लगते ही आरोपप्रत्यारोपों द्वारा एक-दूसरे पर दोषारोपण प्रारंभ हो जायेंगे। यह बालक गिरा तो गिरा कैसे ? किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया ? सबके सब क्या कर रहे थे? इतने लोग एक बच्चे को नहीं संभाल सकते? नतीजा होगा अशान्ति, दु:ख और कलह ।
बच्चे के प्रति सहानुभूति, उसकी संभाल, उसका समय पर डॉक्टरी सहायता आदि तो एक ओर रह जायेगे; सब मुँह लटका कर बैठ जाँयेगे, उलझ गया पूरा परिवार उस समस्या में।
अत: यदि सुख-शान्ति से जीवन जीना है तो सत्य तथ्य (True fact) को कभी भी समस्या (Problem) मत बनने दो। अभी इतना ही, शेष फिर कभी।