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________________ तथ्य एवं सत्य को समस्या मत बनने दो ३९ 21 पाँच तथ्य एवं सत्य को समस्या मत बनने दो लाभानन्द बहुत समय से मानव समाज के इस मनोवैज्ञानिक तथ्य एवं सार्वजनिक सत्य को अनुभव कर रहा था कि - "सभी मानव मानसिक सुख-शान्ति से अपना वर्तमान जीवन-यापन करना चाहते हैं। परलोक में अच्छी गति प्राप्त हो, इसके लिए भी कुछ करना चाहते हैं। पारिवारिक सुख के लिए परस्पर प्रेम से भी रहना चाहते हैं। इसके अलावा आर्थिक अभाव में भी कोई व्यक्ति सुख से जीवन-यापन नहीं कर सकता; क्योंकि भौतिक सुख-सुविधायें भी तो सबको चाहिए ही न! इसके लिए जो उपाय संभव होते हैं, व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें करने को सदैव तत्पर रहते हैं; परन्तु यह सब कैसे होगा ? इसका सही उपाय क्या है ? इनमें सफलता प्राप्त करने का राज क्या है ? यह अधिकांश व्यक्ति नहीं जानते । इसकारण जो भी आधे/अधूरे उपाय करते हैं, उनसे पूरी तरह सफलता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में व्यक्ति सुखशान्ति से जीवन-यापन कैसे कर सकते हैं ? अतः इस दिशा में कुछ ऐसा प्रयत्न करना चाहिए ताकि व्यक्ति कोई सही उपाय जान सके।" यह सोचते-विचारते उसे एक उपाय सूझा कि - क्यों न इस विषय पर एक ऐसा सेमीनार आयोजित किया जाय, जिसमें इस दिशा में सफल व्यक्तियों के विचार सुनने को मिलें? उन्हीं विचारों में से कोई ऐसा मार्ग मिल जायेगा, जो हमें हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में, हमारे सपने पूरे करने में सहायक हो सकेगा। बस, फिर क्या था लाभानन्द ने एक ऐसे सेमीनार करने की रूपररेखा तैयार की, जिसमें व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक एवं पारिवारिक उत्थान की खुलकर चर्चा हो। सेमीनार का विषय रखा - 'लोक व्यवहार में कशलता, व्यापार में सफलता और परलोक में सदगति प्राप्त करने की कला।' विषय आकर्षक था और इस सेमीनार के प्रमुख वक्ता लोकप्रिय वक्ता ज्ञानेशजी थे, इस कारण विशाल सेमीनार स्थल समय के पहले ही खचाखच भर गया। ___ मंगलाचरणोपरान्त सेमीनार के संचालक लाभानन्द ने हजारों हाथों की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ प्रमुख वक्ता का माल्यार्पण से स्वागत करते हुए कहा - "आज हम सब ज्ञानेशजी को अपने बीच पाकर गौरवान्वित हैं। आप लोगों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि धार्मिक क्षेत्र के शिखर पुरुष श्री ज्ञानेशजी का आध्यात्मिक अध्ययन और अहिंसक आचरण तो अनुकरणीय है ही, उनका दुनियादारी को देखने का नजरिया भी आदर्श है, हम सबके लिए सन्मार्ग दर्शक है।" ___ इसप्रकार विशाल जनसमूह को ज्ञानेशजी का संक्षिप्त परिचय कराते हुए उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया। ज्ञानेशजी ने तालियों की गूंज से किए गये अपने विशेष स्वागत के प्रत्युत्तर में धन्यवाद देते हुए एवं सबके कल्याण की कामना करते हुए अपना भाषण प्रारंभ किया - "मित्रो ! मैं आपको कुछ ऐसे वास्तविक तथ्य और प्रयोग्य सिद्ध सत्य बताना चाहता हूँ, जिन्हें अपना कर मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सतत सफलता की ओर अग्रसर हूँ, सन्तुष्ट हूँ, सुख शान्ति का अनुभव करता हूँ। ___ मैं अपने इस उपलब्ध सुख और सफलता को आप सब में बाँट देना चाहता हूँ। आप सोचते होंगे कि - 'ज्ञानेशजी तो कोई अलौकिक, चमत्कारिक या सिद्ध पुरुष हैं, उन्हें तो कोई गॉडगिफ्ट है, जिसके
SR No.008390
Book TitleYe to Socha hi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size317 KB
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