________________
अच्छे अवसर द्वार खटखटाते हैं
३७
20
ये तो सोचा ही नहीं बड़ी) बिल्लियाँ अन्दर-बाहर कैसे आ-जा सकती हैं? अत: वह दोनों बिल्लियों को अन्दर-बाहर आने-जाने के लिए दो द्वार बनाने का आग्रह तबतक करता रहा, जबतक कि उसे एक ही द्वार से दोनों बिल्लियाँ निकालकर प्रत्यक्ष नहीं दिखा दी गईं।
यह जरूरी नहीं कि एक बहुत बड़ा इंजीनियर, डॉक्टर, एम.बी.ए. और आई.ए.एस. व्यक्ति चाय भी अच्छी बना सके, शर्ट का बटन भी टांक सके। ऐसी स्थिति में यदि धनेश धरम-करम से अनजान है तो इसमें कुछ आश्चर्य की बात नहीं है।'
ज्ञानेश ने धनेश को समझाया - "मित्र ! अपने बारे में, आत्मापरमात्मा के बारे में, संसार, शरीर व भोगों की क्षणभंगुरता एवं संसार की असारता के बारे में विचार करने से माथा खराब नहीं होता, बल्कि ऐसे विचार से अनादिकाल से खराब हुआ माथा ठीक होता है।" ।
ज्ञानेश ने आगे कहा - "माथा खराब होता है मोह-राग-द्वेष और कषाय के कलुषित भावों से, माथा खराब होता है गैरकानूनी व्यापारधंधों से चिपके रहने में अनुचित लाभ उठाने के लोभ में दिन-रात खोटा ध्यान करने में, जिसका फल नरक है। भाई ! सबसे अधिक माथा खराब होता है दूसरों को नीचे गिरा कर आगे बढ़ने के विचारों में, दूसरों का भला-बुरा करने की चिन्ता में। अतः यदि तुम अपना भला चाहते हो, अपना माथा ठीक रखना चाहते हो तो मैं जो कहता हूँ, उस पर गंभीरता से विचार करो और अपने इस भौतिकवादी भोगप्रधान दृष्टिकोण को बदलो।
धनेश! मैं जानता हूँ कि तुझे मेरी सलाह की गर्ज नहीं है, पर न जाने क्यों मेरा मन मुझे तुझसे कभी-कभी कुछ कहने को मजबूर कर देता है। इसी सिलसिले में एक बात और कहने का मन हो रहा है। वह
यह कि - ये जो खोटे भाव (पाप) होते हैं, इनका फल क्या होगा? इस बात पर भी थोड़ा विचार करना।”
भाई ! मुझे और कोई चिन्ता नहीं है। आजकल मैं जब कभी थोड़ी-बहुत देर के लिए दुकान पर जाता हूँ तो वहाँ मेरा मन ही नहीं लगता । मैं वहाँ बैठा-बैठा भी इसी संदर्भ में सोचता रहता हूँ। इससे मैं बहुत से अनर्थकारी विचारों से बचा रहता हूँ। यदि तुम भी अपने में होनेवाले भावों के बारे में विचार करोगे और उनसे होने वाले पुण्य-पाप के बारे में चिन्तन करोगे तो तुम्हारे जीवन में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हो सकता है और अनुपम आनन्द की झलक आ सकती है।"
धनेश ने रूखा-सा जवाब दिया - "मित्र! तुम्हारा चिन्तन तुम्हें ही मुबारक हो और तुम्हारे जैसा जीवन भी तुम्हें ही मुबारक हो।” ___ ज्ञानेश ने कहा - "भाई ! परामर्श मानने के लिये कोई किसी को बाध्य नहीं कर सकता, करना भी नहीं चाहिये। इसके लिये तुम पूर्ण स्वतंत्र हो, पर कभी-कभी तुम मिलने-जुलने तो आते ही रहना । विचारों के आदान-प्रदान से कभी किसी को कुछ न कुछ लाभ तो होगा ही।
आत्मचिन्तन आत्मा-परमात्मा की शोध-खोज का सर्वोत्तम साधन है, आत्मोपलब्धि का और अज्ञानजन्य आकुलता को मेटने का अमोघ उपाय है।"
धनेश ने कहा - "हाँ, हाँ; आऊँगा, अवश्य आऊँगा। आखिर बचपन के मित्र जो हैं और विचारशील व्यक्तियों में मतभेद तो होते ही हैं, पर उनमें मनभेद नहीं होना चाहिये।"