________________ 169 168 यदिचूक गये तो नव साहित्य सृजन एवं सुयोग्य विद्वानों के निर्माण में व्यतीत हो रहा है। हमारे जयपुर प्रवास में आयोजित विभिन्न धार्मिक समारोह गोष्ठियों आदि में आपने अपने तत्त्वज्ञान से समाज को काफी लाभान्वित किया है। आपके द्वारा रचित प्रथमानुयोग के शलाका पुरुष भाग एक व दो तथा हरिवंश कथा आपकी लेखनी के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। सहज, सरल व गम्भीर व्यक्तित्व के धनी पण्डितजी का साहित्य और जैन तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार में जो योगदान है, वह अनुपमेय है। पण्डितजी साहब दीर्घजीवी होकर जिनवाणी की इसीप्रकार निरन्तर सेवा करते रहें। यह मेरा मंगल आशीर्वाद है। स्मरणीय सेवा * पण्डिताचार्य भट्टारक श्री चारुकीर्तिजी, जैनमठ, मूडबिद्री पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल इतनी सादगी से रहते हैं कि प्रथमदृष्टया मिलने पर कोई उनके विशाल व्यक्तित्व का अंदाज भी नहीं लगा पाता और जब उसे उनका परिचय मिलता है तो उनकी सरलता को देखकर मिलनेवाले आश्चर्य चकित हो जाते हैं। पण्डितजी ने सरल लोकभाषा में धर्म के सिद्धान्तों को प्रस्तुत करके अत्यन्त उपकार किया है। उनकी किताबों के कन्नड़ अनुवाद से कन्नड़ की जनता भी उनका उपकार मानती है। आपने धार्मिक उत्थान के साथ सामाजिक समस्याओं के लिए भी अपनी पुस्तकों में अनेक व्यावहारिक समाधान सुझाकर समाजोत्थान के लिए भी आश्चर्यपूर्ण काम किया है। आपकी सेवाओं को सदैव याद किया जायेगा। - रतनचन्द से त्रैलोक्यनाथ बनें * स्वस्ति श्री भट्टारक चिन्तामणि धवलकीर्ति स्वामीजी, अर्हत्सुगिरि पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल तो चन्द से भी शीतल, सरल एवं कर्मठ कार्यकर्ता हैं। उनकी जैन साहित्य की मौलिक कृतियाँ हर एक मानव की मानवता का उत्थान करनेवाली हैं। उनके लेखन एवं बोलने की शैली भी अर्थ गम्भीरता को सूचित करती है। उन्होंने दक्षिण से लेकर उत्तर तक समस्त भारतभूमि की जनता का उत्थान किया है और अभी भी कर रहे हैं। वे साहित्य के माध्यम से विदेशों में भी पहुँच गये हैं। कुछ लोग जयपुर में बैठकर पत्थर में भगवान का रूप दे रहे हैं तो हमारे रतनचन्दजी जयपुर में बैठकर इन्सान को साक्षात् भगवान बनाने की कला सिखा रहे हैं। वास्तव में उनका जीवन धन्य है।