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जयमाला
दोहा
आलोकित हो लोक में, प्रभु परमात्मप्रकाश । आनन्दामृत पानकर, मिटे सभी की प्यास ।।
पद्धरि छन्द
जय ज्ञानमात्र ज्ञायक - स्वरूप, तुम हो अनन्त चैतन्य रूप । तुम हो अखण्ड आनन्द - पिण्ड, मोहारि दलन को तुम प्रचण्ड ।। रागादि विकारीभाव जार", तुम हुए निरामय' निर्विकार । निर्द्वन्द्व निराकुल निराधार, निर्मम निर्मल हो निराकार ।। नित करत रहत आनन्दरास, स्वाभाविक परिणति में विलास । प्रभु शिवरमणी के हृदयहार, नित करत रहत निज में बिहार ।। प्रभु भवदधि' यह गहरो अपार, बहते जाते सब निराधार । निज परिणति का सत्यार्थभान, शिव-पद दाता जो तत्त्वज्ञान ।। पाया नहिं मैं उसको पिछान, उलटा ही मैंने लिया मान । * चेतन को जड़मय लिया जान, तन में अपनापा लिया मान ।। शुभ-अशुभ राग जो दुःख-खान, उसमें माना आनन्द महान । प्रभु अशुभकर्म को मान हेय, माना पर शुभ को उपादेय ।। जो धर्म ध्यान आनन्द-रूप, उसको माना में दुःख - स्वरूप । मनवांछित चाहे नित्य भोग, उनको ही माना है मनोग ।। इच्छा -निरोध की नहीं चाह, कैसे मिटता भव विषय- दाह । आकुलतामय संसार - सुख, जो निश्चय से है महादुःख ।।
१. मोहरूपी शत्रु २. नाश करना ३. जलाकर ४. निरोग
५. ममतारहित ६. संसार सागर ७. पहचान ।
* यहाँ से
सिद्ध पूजन
5 पंक्तियों में सात तत्त्व सम्बन्धी भूलों की ओर संकेत किया गया है।
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वीतराग-विज्ञान भाग - ३
उसकी ही निश-दिन करी आस, कैसे कटता संसारपास' । भव-दुःख का पर को हेतु जान, पर से ही सुख को लिया मान ॥ मैं दान दिया अभिमान ठान, उसके फल पर नहिं दिया ध्यान। पूजा कीनी वरदान माँग, कैसे मिटता संसार - स्वाँग ।। तेरा स्वरूप लख प्रभु आज, हो गये सफल संपूर्ण काज मोर प्रकट्यो प्रभु भेदज्ञान, मैंने तुम को लीना पिछान ।। तुम पर के कर्त्ता नहीं नाथ, ज्ञाता हो सब के एक साथ तुम भक्तों को कुछ नहीं देत, अपने समान बस बना लेत ।। यह मैंने तेरी सुनी आन, जो लेवे तुमको बस पिछान । वह पाता है केवल्यज्ञान, होता परिपूर्ण कला-निधान ।। विपदामय पर पद है निकाम, निजपद ही है आनन्दधाम । मेरे मन में बस यही चाह, निजपद को पाऊँ हे जिनाह ।। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। दोहा
पर का कुछ नहिं चाहता, चाहूँ अपना भाव ।
निज स्वभाव में थिर रहूँ, मेटो सकल विभाव ।।
पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्
प्रश्न -
१. जल, नैवेद्य और फल का छन्द अर्थ सहित लिखिये ।
२. जयमाला में से जो पंक्तियाँ तुम्हें रुचिकर हों, उनमें से चार पंक्तियाँ अर्थ सहित लिखिये तथा रुचिकर होने का कारण भी लिखिये ।
१. संसार का बंधन २. लिया।