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________________ पाठ १ । | सिद्ध पूजन स्थापना चिदानन्द स्वातमरसी, सत् 'शिव' सुन्दर ' जान । ज्ञाता दृष्टा लोक के, परम सिद्ध भगवान ।। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते ! सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। जल ज्यों-ज्यों प्रभुवर जल पान किया, त्यों-त्यों तृष्णा की आग जली। थी आश कि प्यास बुझेगी अब, पर यह सब मृगतृष्णा निकली।। आशा-तृष्णा से जला हृदय, जल लेकर चरणों में आया। होकर निराश सब जग भर से, अब सिद्ध शरण में मैं आया।। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन तन का उपचार किया अबतक, उस पर चन्दन का लेप किया। मल-मल कर खूब नहा करके, तन के मल का विक्षेप किया। अब आतम के उपचार हेतु, तुमको चन्दनसम है पाया। होकर निराश सब जग भर से, अब सिद्ध शरण में मैं आया। ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि. । १.ज्ञानानन्द स्वभावी २.अपने आत्मा में लीन रहनेवाले ३. सत्ता स्वरूप ४. कल्याणमयी ५.जैकालिक शुद्धस्वभावी। 2
SR No.008388
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size131 KB
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