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जिनेश - सिद्धचक्र ? क्या तमने कभी सिद्धचक्र का पाठ नहीं देखा ? दिनेश - नहीं। जिनेश - सिद्ध तो मुक्त जीवों को कहते हैं। जो संसार के बंधनों से छूट
गये हैं, जिसमें अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान और अनन्त सुख प्रकट हो गये हैं, जो अष्टकर्म से रहित हैं, राग-द्वेष के बन्धनों से मुक्त हैं, ऐसे अनन्त परमात्मा लोक के अग्रभाग में विराजमान हैं, उन्हें ही सिद्ध कहते हैं और उनका समुदाय ही सिद्धचक्र हुआ। अतः सिद्धचक्र के पाठ में सिद्धों की पूजन-भक्ति होती है। साथ ही उसकी जयमालाओं में बहुत सुन्दर आत्महित करनेवाले तत्त्वोपदेश भी होते हैं, जो कि
समझने योग्य हैं। दिनेश - जयमाला में तो स्तुति होती है ? जिनेश - स्तुति तो होती ही है, साथ ही सिद्धों ने सिद्धदशा कैसे प्राप्त
की, इस सन्दर्भ में मुक्ति के मार्ग का भी प्रतिपादन हो जाता
कार्तिक सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक, फाल्गुन सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक और आषाढ़ सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक, वर्ष में तीन बार यह पर्व मनाया जाता है। देवता लोग तो इस पर्व को मनाने के लिए नन्दीश्वर द्वीप जाते हैं, पर हम
वहाँ तो जा नहीं सकते; अत: यहीं भक्तिभाव से पूजा करते हैं। दिनेश - यह नन्दीश्वर द्वीप कहाँ है ? जिनेश - तुमने तीन लोक की रचना वाला पाठ पढ़ा था न। उसमें
मध्यलोक में जो असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं, उनमें यह
आठवाँ द्वीप है। दिनेश - हम वहाँ क्यों नहीं जा सकते ? जिनेश - तीसरे पुष्कर द्वीप में एक पर्वत है, जिसका नाम है मानुषोत्तर
पर्वत । मनुष्य उसके आगे नहीं जा सकेगा, इसलिए उसका
नाम मानुषोत्तर पर्वत पड़ा है। दिनेश - अच्छा ! वहाँ ऐसा क्या है, जो देव वहाँ जाते हैं ? जिनेश - वहाँ बहुत मनोज्ञ अकृत्रिम (स्वनिर्मित) ५२ जिन मंदिर हैं।
वहाँ जाकर देवगण पूजा, भक्ति और तत्त्वचर्चा आदि के द्वारा आत्मसाधना करते हैं। हम लोग वहाँ नहीं जा सकते, अत: यहीं पर विविध धार्मिक आयोजनों द्वारा आत्महित में
प्रवृत्त होते हैं। दिनेश - यह पर्व भारतवर्ष में कहाँ-कहाँ मनाया जाता है और इसमें
क्या-क्या होता है ? जिनेश - सारे भारतवर्ष में जैन समाज इस महापर्व को बड़े ही उत्साह से
मनाता है। अधिकांश स्थानों पर सिद्धचक्र विधान का पाठ होता है, बाहर से विद्वान बुलाये जाते हैं, उनके आध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन होते हैं। एक तरह से सब जगह जैन
समाज में धार्मिक वातावरण छा जाता है। दिनेश - यह सिद्धचक्र क्या है ? इसके पाठ में क्या होता है ?
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दिनेश - क्या तुम उनका अर्थ मुझे समझा सकते हो ? जिनेश - नहीं भाई ! जब सिद्धचक्र का पाठ होता है तो बाहर से बुलाये
गये या स्थानीय विशेष विद्वान जयमाला का अर्थ करते हैं,
उस समय हमें ध्यान से समझ लेना चाहिए। दिनेश - उनके पूजन-विधान से क्या लाभ ? जिनेश - हम उनके स्वरूप को पहिचान कर यह जान सकते हैं कि
जैसी ये आत्माएँ शुद्ध और पवित्र हैं, वैसा ही हमारा स्वभाव शुद्ध और निरंजन है और इनके समान मुक्ति का मार्ग अपनाकर हम भी इनके समान अनंत सुखी और अनंत ज्ञानी बन सकते हैं। यह पर्वराज दशलक्षण पर्व के बाद दूसरे
नम्बर का धार्मिक महापर्व है। दिनेश - हमने सुना है कि सिद्धचक्र-विधान से कुष्ठ रोग मिट जाता है।
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