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पाठ६
| सप्त व्यसन
छात्र - ये तिरछे हैं या नीचे-नीचे ? अध्यापक - ये तो ऊपर-ऊपर हैं। छात्र - अच्छा नरक तो सात हैं पर स्वर्ग ?
अध्यापक - स्वर्ग तो सोलह हैं, जिनके नाम हैं - सौधर्म-ऐशान, सानत्कुमार-माहेन्द्र, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव-कापिष्ठ, शुक्र-महाशुक्र, सतार-सहस्रार, आनत-प्राणत, आरण-अच्युत । इनके भी ऊपर नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमान हैं। सर्वार्थसिद्धि इन्हीं पाँचों में पाँचवाँ विमान है।
छात्र - इसके ऊपर क्या है ?
अध्यापक - सिद्धशिला; जहाँ अनंत सिद्ध विराजमान हैं। सामान्यत: यही तीन लोक की रचना है।
छात्र - गुरुजी ! हमें तो पूर्ण संतोष नहीं हुआ, विस्तार से समझाइये?
अध्यापक - एक दिन के पाठ में इससे अधिक क्या समझाया जा सकता है ? यदि तुम्हें जिज्ञासा हो तो तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थवार्तिक, त्रिलोकसार आदि शास्त्रों से जानना चाहिए।
प्रश्न १. जम्बूद्वीप का नक्शा बनाइये तथा उसमें प्रमुख स्थान दर्शाइये। २. नरक कितने हैं ? उनके नाम लिखकर वहाँ की स्थिति का चित्रण अपने शब्दों में
कीजिए। ३. क्षेत्रों का विभाजन करने वाले पर्वतों और क्षेत्रों के नाम लिखकर कुन्दकुन्द और
सीमन्धर स्वामी का निवास बताइये।
कविवर पण्डित बनारसीदासजी
(व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) अध्यात्म और काव्य दोनों क्षेत्रों में सर्वोच्च प्रतिष्ठा-प्राप्त पण्डित बनारसीदासजी सत्रहवीं शताब्दी के रससिद्ध कवि और आत्मानुभवी विद्वान थे।
आपका जन्म श्रीमाल वंश में लाला खरगसेन के यहाँ वि.सं. १६४३ में माघ सुदी एकादशी रविवार को हुआ था। उस समय इनका नाम विक्रमजीत रखा गया था, परन्तु बनारस की यात्रा के समय पार्श्वनाथ की जन्मभूमि वाराणसी के नाम पर इनका नाम बनारसीदास रखा गया। ये अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थे। __ आपने अपने जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे थे। आर्थिक विषमता का सामना भी आपको बहुत बार करना पड़ा था तथा आपका पारिवारिक जीवन भी कोई अच्छा नहीं रहा। आपकी तीन शादियाँ हुईं, नौ संताने हुईं - ७ पुत्र एवं २ पुत्रियाँ; पर एक भी जीवित नहीं रहीं। ऐसी विषम-परिस्थिति में भी आपका धैर्य भंग नहीं हुआ, क्योंकि वे आत्मानुभवी पुरुष थे। __काव्य-प्रतिभा तो आपको जन्म से ही प्राप्त थी। १४ वर्ष की उम्र में आप उच्चकोटि की कविता करने लगे थे, पर प्रारम्भिक जीवन में शृंगारिक कविताओं में मग्न रहे। इनकी सर्वप्रथम कृति 'नवरस' १४ वर्ष की उम्र में तैयार हो गई थी, जिसमें अधिकांश शृंगार रस का ही वर्णन
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