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विदाई की बेला अधिष्ठाता गु. दिग. जैन उदासीन आश्रम, द्रोणगिरी (म. प्र. ) • किसी भी वर्ग के पाठक का मन ऊब नहीं सकता
पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित 'विदाई की बेला' पुस्तक मेरे पास लगभग एक मास पूर्व आ गई थी, पर इसे एक के बाद एकअनेक पाठकों ने सुझे से मांग-मांगकर रुचिपूर्वक आद्योपान्त पढ़ा और मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की। यह आज मेरे हाथ में आ पाई है। इससे इसकी रोचकता सिद्ध होती है। इसे जो भी पढ़ना शुरू करता है, वह अन्त तक पहुँचे बिना नहीं रहता ।
"जो भी पैदा होता है, उसे एक न एक दिन वर्तमान जीवन से विदाई लेनी पड़ती है" - इसी बात को प्रतिभाशाली लेखक ने अत्यन्त रोचक शैली में कथा का रूप देकर प्रकट किया है। कठिन से कठिन तत्त्वों को सरल एवं सरस हिन्दी भाषा में ऐसे ढंग से लिखा है कि किसी भी वर्ग के पाठक का मन ऊब नहीं सकता।
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प्रस्तुत पुस्तक में यत्र-तत्र प्रसंगतः संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के अत्यन्त सरल और शिक्षाप्रद पद्य दिये हैं, जिनसे इसकी गरिमा और भी अधिक बढ़ गई है।
कथानक में दिये गये पात्रों के सदासुखी एवं विवेकी आदि नाम सार्थक हैं, जिन्हें सोच-समझकर ही रखा गया है।
प्रस्तुत कृति में सल्लेखना की चर्चा अपेक्षाकृत विस्तार से की गई है । जो अक्षरशः पढ़ने योग्य है। वैसे तो सल्लेखना व समाधिमरण दोनों पर्यायवाचक शब्द हैं, पर विद्वान लेखक ने पृष्ठ ९ पर जो सूक्ष्म अन्तर बतलाया है - वह मूलतः दृष्टव्य है।
इसे जो भी पढ़ेंगे उनके मन अवश्य ही निर्मल-निर्विकार होंगे। मानव जीवन में जन्म की अपेक्षा मरण सुधारने का महत्त्व अधिक होता है । जिन्होंने समाधि द्वारा अपने मरण करें संभाल लिया वे अपने अगले जन्म को सुखी बना लेते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक का विषय, लेखन शैली, प्रूफ संशोधन, टाइप, कागज, छपाई-सफाई और गैटअप आदि सभी नयनाभिराम और चित्ताकर्षक है।
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अभिमत
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- पं. अमृतलाल शास्त्री, साहित्याचार्य, ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनूं • सही जीवन-शैली समझाने में समर्थ कृति
'विदाई की बेला' में लेखक ने नाना जन्मों में होनेवाले चिरविदाई का कथाशैली में सुन्दर वर्णन किया है।
बार-बार होनेवाली दुःखद चिरविदाई सुखद कैसे बन सकती है? इस बात को आगम के आलोक में समझाने का सफल प्रयास प्रस्तुत कृति में किया गया है। तत्त्वदर्शन से समन्वित यह रचना रुचिकर तो है ही, इसकी भाषा-शैली भी सरल एवं प्रवाहपूर्ण है। आशा है पाठक इस रचना के माध्यम से अपनी जीवन शैली समझने में यत्नशील होंगे। - डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, एम.ए., पीएच. डी. शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नीमच (म. प्र. )
• आपकी लेखनी से ऐसा ही लेखन सदैव होता रहे
आपकी लिखी 'विदाई की बेला' पढ़ी। पुस्तक इतनी अच्छी लगी कि पढ़ना प्रारंभ करने पर पूरी करके ही रुका। अनेक स्थल तो ऐसे प्रेरणादायक और हृदयस्पर्शी हैं, जिन्हें पुनः पढ़ने का मन होता है।
मृत्युमहोत्सव के विषय में दी गई व्यावहारिक जानकारी तो मार्मिक है ही, तात्त्विक विषयवस्तु और आध्यात्मिक गहराई भी भरपूर है। आपकी लेखनी से इसीप्रकार का यशस्वी लेखनकार्य होता रहे यही मंगल कामना है। - डॉ. व्ही. एच. सोनटके, नाला सोपार, (वेस्ट) महाराष्ट्र
• एक-एक अक्षर में रस की गंगा बहती है
मैंने आपके द्वारा लिखित विदाई की बेला, सुखी जीवन, संस्कार और इन भावों का फल क्या होगा, आदि किताबों का ज्ञान प्राप्त किया है। वह मुझे बहुत ही अच्छी लगीं, मेरे मित्रों ने भी इन पुस्तकों को पढ़ा और इनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि इन पुस्तकों के एक-एक अक्षर
रस की गंगा बहती है और बहुत ज्ञानप्रद बातें प्राप्त होती हैं। यद्यपि हम जैन नहीं हैं; फिर भी आपका साहित्य अत्यन्त सरल भाषा में होने से हमें समझ में आ जाता है।
मुझे और मेरे मित्रों को इन पुस्तकों को पढ़कर बहुत खुशी होती है। मेरे मित्रों ने आपसे मिलने की इच्छा भी व्यक्त की है।