________________
तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग -२
कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगततनुर्ज्ञाननिवहो विचित्रात्माप्येको नृपतिवरसिद्धार्थतनयः। अजन्मापि श्रीमान् विगतभव रागोद्भुतगतिः महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (नः) ।।५।।
यदीया वाग्गंगा विविधनयकल्लोलविमला, वृहज्ज्ञानांमोभिर्जगति जनतांया स्नपयति । इदानीमप्येषा बुधजनमरालैः परिचिता,
महावीरस्वामी नयनपथगामीभवतु मे (नः) ।।६।। अनिर्वारोद्रेकस्त्रिभुवनजयी कामसुभटः, कुमारावस्थायामपि निजबलाद्येन विजितः। स्फुरन्नित्यानन्दप्रशमपदराज्यायस जिनः, महावीरस्वामी नयनपथगामीभवतुमे (नः) ॥७॥
महामोहांतकप्रशमनपराकस्मिकभिषग निरापेक्षोबंधुर्विदितमहिमा मंगलकरः। शरण्यः साधूनां भवभयमृतामुत्तमगुणो
महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतुमे (नः) ॥८॥ महावीराष्टकं स्तोत्रं भक्त्या भागेन्दुना कृतम् । यः पठेच्छृणुयाच्चापिसयाति परमांगतिम् ।।९।।
महावीराष्टक स्तोत्र
जो अंतरंग दृष्टि से ज्ञानशरीरी (केवलज्ञान के पुञ्ज) एवं बहिरंग दृष्टि से तप्त स्वर्ण के समान आभामय शरीरवान होने पर भी शरीर से रहित हैं; अनेक ज्ञेय उनके ज्ञान में झलकते हैं - अतः विचित्र (अनेक) होते हुए भी एक (अखण्ड) हैं; महाराजा सिद्धार्थ के पुत्र होते हुए भी अजन्मा हैं; और केवलज्ञान तथा समवशरणादि लक्ष्मी से युक्त होने पर भी संसार के राग से रहित हैं। इस प्रकार के आश्चर्यों के निधान वे भगवान महावीर स्वामी मेरे (हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे (हमें) दर्शन दें ।।५।।
जिनकी वाणीरूपी गंगा नाना प्रकार के नयरूपी कल्लोलों के कारण निर्मल है और अगाध ज्ञानरूपी जल से जगत की जनता को स्नान कराती रहती है तथा इस समय भी विद्वज्जनरूपी हंसों के द्वारा परिचित हैं, वे भगवान महावीर स्वामी मेरे (हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे (हमें) दर्शन दें।।६।।
अनिर्वार है वेग जिसका और जिसने तीन लोकों को जीत लिया है, ऐसे कामरूपी सुभट को जिन्होंने स्वयं आत्म-बल से कमारावस्था में ही जीत लिया है, परिणामस्वरूप जिनके अनन्तशक्ति का साम्राज्य एवं शाश्वतसुख स्फुरायमान हो रहा है; वे भगवान महावीर स्वामी मेरे (हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे (हमें) दर्शन दें।।७।।
जो महा मोहरूपी रोग को शान्त करने के लिए निरपेक्ष वैद्य हैं, जो जीव मात्र के निःस्वार्थ बन्धु हैं, जिनकी महिमा से सारा लोक परिचित है, जो महामंगल के करने वाले हैं, तथा भव-भय से भयभीत साधओं को जो शरण हैं; वे उत्तम गुणों के धारी भगवान महावीर स्वामी मेरे (हमारे) नयनपथगामी हों अर्थात् मुझे (हमें) दर्शन दें।।८।।
जो कविवर भागचंद द्वारा भक्तिपूर्वक रचित इस महावीराष्टक स्तोत्र का पाठ करता है व सुनता है, वह परमगति (मोक्ष) को पाता है।
प्रश्न१. कोई एक छन्द जो आपको रुचिकर हो, अर्थ सहित लिखिए।