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________________ ५०. आत्मा में अत्यन्ताभाव है; फिर एक द्रव्य के कारण दूसरे द्रव्य में कार्य कैसे हो सकता है ? शंकाकार शास्त्र में ऐसा क्यों लिखा है कि ज्ञानावरण कर्म के क्षय से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है ? आचार्य समन्तभद्र - शास्त्र में ऐसा निमित्त का ज्ञान कराने के लिए अद्भूत व्यवहार नय से कहा जाता है, किन्तु वस्तुतः (निश्चय नय से) विचार किया जाय तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के कार्य का कर्ता हो ही नहीं सकता। इस तरह हम देखते हैं कि वस्तुस्वरूप तो अनेकान्तात्मक है। अकेला भाव ही वस्तु का स्वरूप नहीं है। अभाव भी वस्तु का धर्म है, उसे माने बिना वस्तु की व्यवस्था नहीं बनेगी। अतः चारों अभावों का स्वरूप अच्छी तरह समझकर मोहराग-द्वेषादि विकार का अभाव करने के प्रति सावधान होना चाहिए। प्रश्न १. अभाव किसे कहते हैं? वे कितने प्रकार के होते हैं ? नाम सहित लिखिए। २. निम्नलिखित में परस्पर अन्तर बताइये - क) प्रागभाव और प्रध्वंसाभाव ख) अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव - ३. अभावों को समझने से क्या लाभ है ? ४. निम्नलिखित अभावों के स्वरूप के सन्दर्भ में समीक्षा कीजिए ५. चार अभाव क) ज्ञानावरण कर्म के क्षय से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। ख) कर्म के उदय से शरीर में रोग होते हैं। ग) यह आदमी चोर है, क्योंकि इसने पहले स्कूल में पढ़ते समय मेरी पुस्तक चुरा ली थी। निम्नलिखित जोड़ो में परस्पर कौनसा अभाव है - क) इच्छा और भाषा ख) चश्मा और ज्ञान ग) शरीर और वस्त्र घ) शरीर और जीव ६. आचार्य समन्तभद्र के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए । (26) पाठ ८ पाँच पाण्डव आचार्य जिनसेन (व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) पुराण ग्रन्थों में पद्मपुराण के बाद जैन समाज में सबसे अधिक पढ़ा जानेवाला प्राचीन पुराण है- हरिवंशपुराण । इसमें छियासठ सर्ग और बारह हजार श्लोक हैं। इसमें बाईसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का चरित्र विशद रूप से वर्णित है। इसके अतिरिक्त कृष्ण-बलभद्र, कौरव पाण्डव आदि अनेक इतिहासप्रसिद्ध महापुरुषों के चरित्र भी बड़ी खूबी के साथ चित्रित हैं। 1 इसके रचियता हैं आचार्य जिनसेन आचार्य जिनसेन महापुराण के कर्त्ता भगवज्जिनसेनाचार्य से भिन्न हैं। ये पुन्नाट संघ के आचार्य थे। पुन्नाट कर्नाटक का प्राचीन नाम है। यह संघ कर्नाटक और काठियावाड़ के निकट २०० वर्ष तक रहा है। इस संघ पर गुजरात के राजवंशों की विशेष श्रद्धा और भक्ति रही है। आपके गुरु का नाम कीर्तिषेण था और वर्द्धमान नगर के नन्नराज वसति नाम के मंदिर में रहकर इन्होंने विक्रम संवत् ८४० में यह ग्रन्थ समाप्त किया था। इस ग्रन्थ के अलावा आपका और कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं और न कहीं अन्य ग्रन्थों में उल्लेख ही मिलता हैं। आपकी अक्षय कीर्ति के लिये यह एक महाग्रन्थ ही पर्याप्त है। DjShrutesh5.6.04|shruteshbooks hookhinditvayan Patmala Part-1 - हरिवंशपुराण के भाषा टीकाकार जयपुर के प्रसिद्ध विद्वान पण्डित दौलतरामजी कासलीवाल हैं। प्रस्तुत पाठ आपके उक्त सुप्रसिद्ध ग्रन्थ हरिवंशपुराण के आधार से ही लिखा गया है। पाण्डवों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हरिवंशपुराण और पाण्डवपुराण का अध्ययन करना चाहिए । ➖➖➖
SR No.008382
Book TitleTattvagyan Pathmala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size166 KB
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