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पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ
पाठ ५
सुख क्या है?
प्रतिमा अर्थात् व्यवहार प्रतिमा है। तदनुकूल बाहर की क्रियाओं का व्यवहार प्रतिमा के साथ निमित्त-नैमित्तिक संबंध होने से उन क्रियाओं को भी व्यवहार प्रतिमा कहा जाता है। जिस जीव को अकेली द्रव्य प्रतिमा हो और उसको वह सच्ची प्रतिमारूप चारित्र दशा मानता हो तो उसको विपरीत मान्यता के कारण मिथ्यात्व का बंध होगा, मिथ्यात्व के बंध के साथ कषाय की मंदता के अनुसार पुण्यबंध जरूर होगा, उससे स्वर्गादिक की प्राप्ति भी होगी; किन्तु वह संसार का अंत नहीं ला सकता।
पंचम गुणस्थान में ११ प्रतिमाएँ ग्रहण करने का उपदेश है सो आरंभ से उत्तरोत्तर अंगीकार करनी चाहिए। नीचे की प्रतिमाओं की दशा जो ग्रहण की थी; वह आगे की प्रतिमाओं में छूटती नहीं है, वृद्धि को ही प्राप्त होती है। पहले से छठवीं प्रतिमा तक धारण करने वाले जघन्य व्रती श्रावक, सातवीं से नौवीं प्रतिमा तक धारण करने वाले मध्यम व्रती श्रावक एवं दसवीं व ग्यारहवीं प्रतिमाधारी उत्कृष्ट व्रती श्रावक कहलाते हैं।
प्रश्न -
यह तो सर्वमान्य तथ्य है कि सभी जीव सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं। पर प्रश्न तो यह है कि वास्तविक सुख है क्या ? वस्तुतः सुख कहते किसे हैं ? सुख का वास्तविक स्वरूप समझे बिना मात्र सुख चाहने का कोई अर्थ नहीं।
प्रायः सामान्य जन भोग-सामग्री को सुख-सामग्री मानते हैं और उसकी प्राप्ति को सुख की प्राप्ति समझते हैं, अत: उनका प्रयत्न भी उसी ओर रहता है। उनकी दृष्टि में सुख कैसे प्राप्त किया जाय का अर्थ होता है 'भोग-सामग्री कैसे प्राप्त की जावे ?' उनके हृदय में 'सुख क्या है?' इस तरह का प्रश्न ही नहीं उठता. क्योंकि उनका अंतर्मन यह माने बैठा है कि भोगमय जीवन ही सुखमय जीवन है।
अत: जब-जब सुख-समृद्धि की चर्चा आती है तो यही कहा जाता है कि प्रेम से रहो, मेहनत करो, अधिक अन्न उपजाओ, औद्योगिक और वैज्ञानिक उन्नति करो - इससे देश में समृद्धि आवेगी और सभी सुखी हो जावेंगे। आदर्शमय बातें कही जाती हैं कि एक दिन वह होगा जब प्रत्येक मानव के पास खाने के लिए पौष्टिक भोजन, पहिनने को ऋतुओं के अनुकूल उत्तम वस्त्र और रहने को वैज्ञानिक सुविधाओं से युक्त आधुनिक बंगला होगा; तब सभी सुखी हो जावेंगे।
हम इस पर बहस नहीं करना चाहते हैं कि यह सब कुछ होगा या नहीं, पर हमारा प्रश्न तो यह है कि यह सब कुछ हो जाने पर भी क्या जीवन सुखी हो जावेगा? यदि हाँ, तो जिनके पास यह सब कुछ है, वे तो आज भी सुखी होंगे? या जो देश इस समृद्धि की सीमा छू रहे हैं, वहाँ तो सभी सुखी और शांत होंगे? पर देखा यह जा रहा है कि सभी आकुल-व्याकुल और अशांत हैं, भयाकुल और चिंतातुर हैं; अतः 'सुख क्या है?' इस विषय पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। 'वास्तविक सुख क्या है और वह कहाँ है?' इसका निर्णय किये बिना इस दिशा में सच्चा पुरुषार्थ नहीं किया जा सकता और न ही सच्चा सुख प्राप्त किया जा सकता है।
१. निम्नलिखित की परिभाषा लिखिए -
प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, दर्शन प्रतिमा, उद्दिष्टत्याग प्रतिमा व अनुमतित्याग
प्रतिमा। २. निम्नलिखित में परस्पर अन्तर स्पष्ट कीजिए -
(क) निश्चय प्रतिमा और व्यवहार प्रतिमा (ख) ब्रह्मचर्याणुव्रत और ब्रह्मचर्य प्रतिमा (ग) क्षुल्लक और ऐलक (घ) परिग्रहत्याग व्रत और परिग्रहत्याग प्रतिमा
(16)
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