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________________ --- -- --- -- --- --- -- --- --- - T - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - L- - - -- - - - -- दृष्टिवंत को भ्रमित नहीं होने देता है।।२७२।। ___ एक ओर से एक स्वयं में सीमित अर ध्रुव / अन्य ओर से नेक क्षणिक विस्तारमयी है।। अहो आतमा का अद्भुत यह वैभव देखो। जिसे देखकर चकित जगतजन ज्ञानी होते / / 273 / / - - - - - - -- - - - - -- अचल चेतनारूप में मग्न रहे स्वयमेव / / परिपूरण आनन्दमय अर अद्भुत उद्योत / सदा उदित चहुँ ओर से अमृचन्द्रज्योति / / 276 / / (हरिगीत) गतकाल में अज्ञान से एकत्व पर से जब हुआ। फलरूप में रस-राग अर कर्तृत्व पर में तब हुआ।। उस क्रियाफल को भोगती अनुभूति मैली हो गई। किन्तु अब सद्ज्ञान से सब मलिनता लय हो गई।।२७७।। ज्यों शब्द अपनी शक्ति से ही तत्त्व प्रतिपादन करें। त्यों समय की यह व्याख्या भी उन्हीं शब्दों ने करी / / निजरूप में ही गुप्त अमृतचुद्ध श्री आचार्य का। -इस आत्मख्याति में अरे कुछ भी नहीं कर्तृत्व है - - - - - - - -- एक ओर से शान्त मुक्त चिन्मात्र दीखता। अन्य ओर से भव-भव पीड़ित राग-द्वेषमय / / तीन लोकमय भासित होता विविध नयों से। - - - - -- - - -- --------..(134) अहो आतमा का अद्भुत यह वैभव देखो।।२७४।। - - - - - - - - - - - - - (सोरठा) झलकें तीनो लोक सहज तेज के पुंज में / यद्यपि एक स्वरूप तदपी भेद दिखाई दें।। सहज तत्त्व उपलब्धि निजरस के विस्तार से। नियत ज्योति चैतन्य चमत्कार जयवंत है / / 275 / / (दोहा) मोह रहित निर्मल सदा अप्रतिपक्षी एक / - - - - - - - - - - - ________(135)-----. - - ----------- - - - - - - - ------
SR No.008378
Book TitleSamaysara kalash Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size228 KB
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