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________________ F- -- --- --- --- -- --- -- -- ---- T - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - विरहित सदा परभाव से विलसें सदा निष्कम्प हो ।।२५९।। उत्पाद-व्यय के रूप में वहते हुए परिणाम लख। क्षणभंग के पड़ संग निज का नाश करते अज्ञजन ।। चैतन्यमय निज आतमा क्षणभंग है पर नित्य भीयह जानकर जीवित रहें नित स्याद्वादी विज्ञजन ।।२६०।। - - - - - - रे छोड़कर सब ज्ञेय वे निजक्षेत्र को छोड़े नहीं ।।२५५।। निजज्ञान के अज्ञान से गतकाल में जाने गये। जो ज्ञेय उनके नाश से निज नाश माने अज्ञजन ।। नष्ट हों परज्ञेय पर ज्ञायक सदा कायम रहे । निजकाल से अस्तित्व है- यह जानते हैं विज्ञजन ।।२५६।। अर्थालम्बनकाल में ही ज्ञान का अस्तित्व है। यह मानकर परज्ञेयलोभी लोक में आकुल रहें।। परकाल से नास्तित्व लखकर स्याद्वादी विज्ञजन । - - -- - - - - - - - - - - - है बोध जो टंकोत्कीर्ण विशुद्ध उसकी आश से। चिपरिणति निर्मल उछलती से सतत् इन्कार कर ।। अज्ञजन हों नष्ट किन्तु स्याद्वादी विज्ञजन । - - -- - - - - - -- (१२८) .---------१२६)------- - - -- - ज्ञानमय आनन्दमय निज आतमा में दृढ़ रहें ।।२५७।। परभाव से निजभाव का अस्तित्व माने अज्ञजन । पर में रमें जग में भ्रमे निज आतमा को भूलकर ।। पर भिन्न हो परभाव से ज्ञानी रमे निजभाव में। बस इसलिए इस लोक में वे सदा ही जीवित रहें।।२५८।। -- अनित्यता में व्याप्त होकर नित्य का अनुभव करें ।।२६१।। (दोहा) मूढजनों को इसतरह ज्ञानमात्र समझाय। अनेकान्त अनुभूति में उतरा आतमराय ।।२६२।। अनेकान्त जिनदेव का शासन रहा अलंध्य । वस्तुव्यवस्था थापकर थापित स्वयं प्रसिद्ध ।।२६३।। (रोला) इत्यादिक अनेक शक्ति से भरी हुई है। फिर भी ज्ञानमात्रमयता को नहीं छोड़ती।। और क्रमाक्रमभावों से जो मेचक होकर । -- - - - सब ज्ञेय ही हैं आतमा यह मानकर स्वच्छन्द हो। परभाव में ही नित रमें बस इसलिए ही नष्ट हों ।। पर स्याद्वादी तो सदा आरूढ़ हैं निजभाव में। -- -- - ______(१२७-------- (१२९) ___----- - - - - - - - - - - - - - - - - - -
SR No.008378
Book TitleSamaysara kalash Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size228 KB
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