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________________ F - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - (हरिगीत) सब पुद्गलों में है स्वभाविक परिणमन की शक्ति जब । और उनके परिणमन में है न कोई विघ्न जब ।। क्यों न हो तब स्वयं कर्ता स्वयं के परिणमन का। अर सहज ही यह नियम जानो वस्तु के परिणमन का ।।६४।। । - - - जानता तो है सभी करता नहीं कुछ आतमा। चैतन्य में आरूढ़ नित ही यह अचल परमातमा ।।५९।। (आडिल्ल छन्द) उष्णोदक में उष्णता है अग्नि की। और शीतलता सहज ही नीर की।। व्यंजनों में है नमक का क्षारपन। ज्ञान ही यह जानता है विज्ञजन ।। क्रोधादिक के कर्तापन को छेदता। अहंबुद्धि के मिथ्यातम को भेदता ।। इसी ज्ञान में प्रगटे निज शुद्धात्मा। अपने रस से भरा हुआ यह आतमा ।।६०।। - - - - - आत्मा में है स्वभाविक परिणमन की शक्ति जब । और उसके परिणमन में है न कोई विघ्न जब ।। क्यों न हो तब स्वयं कर्ता स्वयं के परिणमन का। अर सहज ही यह नियम जानो वस्तु के परिणमन का ।।५।। - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -------- (रोला) ज्ञानी के सब भाव शुभाशुभ ज्ञानमयी हैं। अज्ञानी के वही भाव अज्ञानमयी है।। ज्ञानी और अज्ञानी में यह अन्तर क्यों है। तथा शुभाशुभ भावों में भी अन्तर क्यों है ।।६६।। - - - (सोरठा) करे निजातम भाव, ज्ञान और अज्ञानमय । करेन पर के भाव, ज्ञानस्वभावी आतमा ॥१॥ ज्ञानस्वभावी जीव, करे ज्ञान से भिन्न क्या ? कर्ता पर का जीव, जगतजनों का मोह यह ।।१२।। (दोहा) यदि पुद्गलमय कर्म को करे न चेतनराय । कौन करे - अब यह कहें सुनो भरम नश जाय ।।६३।। - - - - - ज्ञानी के सब भाव ज्ञान से बने हुए हैं। अज्ञानी के सभी भाव अज्ञानमयी हैं।। उपादान के ही समान कारज होते हैं। जौ बौने पर जौ ही तो पैदा होते हैं।।६७।। - - - _____(३५)___------ - - - - - - - - - - - - - - - - 7
SR No.008378
Book TitleSamaysara kalash Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size228 KB
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