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________________ समयसार कलश पद्यानुवाद पद्यानुवादक : डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, एम.ए., पीएच.डी. प्रकाशकीय आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थाधिराज समयसार की आचार्य अमृतचन्द्र कृत आत्मख्याति टीका में संस्कृत भाषा के विविध छन्दों में रचित २७८ कलश आये हैं, जो समयसार कलश के नाम से जाने जाते हैं। अध्यात्म अमृत से लबालब भरे वे कलश अध्यात्म प्रेमी मुमुक्षु समाज में इतने लोकप्रिय हए कि उन पर स्वतंत्र टीकाएँ लिखी गईं, जिनमें पाण्डे राजमलजी कृत चार सौ वर्ष पुरानी टीका प्रमुख है। इसके आधार पर ही कविवर बनारसीदासजी ने नाटक समयसार की रचना की है। इस समसार कलश पद्यानुवाद में डॉ. भारिल ने आत्मख्याति के उन्हीं कलशों का सरल, सुबोध और प्रवाहमयी पद्यानुवाद हिन्दी भाषा के विभिन्न छन्दों में प्रस्तुत किया है। यह तो सर्वविदित ही है कि वे समयसार और टीकाओं का अनुशीलन प्रकाशक: पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ए-४, बापूनगर, जयपुर-३०२०१५ प्रथम संस्करण ५ हजार (१० अगस्त २००२) पूर्वार्द्ध प्रथम चार संस्करण : २० हजार (२५ दिसम्बर ९७ से) योग : २५ हजार मूल्य : तीन रुपये इस पुस्तक की कीमत कम करने हेतु टाइपसैटिंग : साहित्य प्रकाशन ध्रुवफण्ड पण्डित त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर की ए-४, बापूनगर, जयपुर | ओर से ७५०१/- रुपये प्रदान किये मुद्रक : गये। जयपुर प्रिन्टर्स प्रा.लि. एम.आई.रोड, जयपुर समयसार कलश पद्यानुवाद की संगीतमय कैसेट भी उपलब्ध है। कर रहे हैं, जो २ हजार १३६ पृष्ठों में तो समाज के समक्ष आ ही गया है। उसी प्रसंग में इस पद्यानुवाद की रचना भी हो गई है। इसका संगीतमय कैसेट भी तैयार है, जो हजारों की संख्या में घर-घर में पहुँचकर गूंज रही है। इसमें एक विशेष बात ध्यान रखने की है कि इसमें छन्दों के नम्बर आत्मख्याति के छन्दों के अनुसार दिये गये हैं, जिससे पाठकों को यह जानने की सुविधा भी रहे कि यह छन्द किस छन्द का पद्यानुवाद है। इस पुस्तक का पूर्वार्द्ध कलश १ से १९२ तक के अब तक चार संस्करण २० हजार की संख्या में प्रकाशित होकर जन-जन तक पहुँच चुके हैं अब इस समयसार कलश (सम्पूर्ण) का प्रकाशन ५ हजार की संख्या में किया जा रहा है, जो आपको हाथों में है। आशा है कि अध्यात्म प्रेमी समाज इस प्रकाशन एवं कैसेट का भरपूर लाभ लेगा। - नेमीचन्द पाटनी महामंत्री
SR No.008378
Book TitleSamaysara kalash Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size228 KB
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